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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir •ईा . राजस्थानी एक कहावत इस प्रकार है :- “पराये दुःख दुबला थोड़ा! पराये सुख दुबला घणा!" स्पष्ट ही इसमें ईर्ष्या पर चोट की गई है। नीतिकारोंने जिन छह दुःखी व्यक्तियों की सूची प्रस्तुत की है उनमें ईर्ष्यालु को सबसे पहले याद किया गया है। सूची देखियें : इौँ घृणी त्वसन्तुष्टः क्रोधनो नित्यशङ्कित्तः। परभाग्योपजीवीच षडेते दुःखभागिनः॥ -महाभारतम् ५/१०५६ (ईर्ष्यालु, घृणा करने वाला असन्तुष्ट, क्रोधी, शङ्काशील और परावलम्बी-ये छह व्यक्ति दुःख भोगते रहते हैं।) ___ एक सेठजी थे। उनके घर पर एक दिन दो पंडित आये।दोनों को अपने-अपने पाण्डित्य पर अभिमान था। उनकी पारस्परिक चर्चाएँ सुनकर सेटजी बहुत चकित हुए; क्योंकि दोनों तर्क के बल पर एक दूसरे की बात का खण्डम कर रहे थे। उधर घर में रसोई बन चुकी थी; इसलिए सेठजी ने प्रार्थना की, कि-आप पहले स्नान-ध्यान से निवृत्त हो लीजिये। फिर भोजनके बाद खुशीसे दिन-भर वाद-विवाद करते रहियेगा। एक पंडित बाल्टी उठाकर नहाने के लिए कुएँ पर गया। उसके जाने पर दूसरे ने सेठजी से कहा कि नहाने से क्या होता है ? मछलियाँ चौवीसों घंटे जल में रहती हैं तो क्या इसीसे वे पवित्र हो जाती हैं ? जल से आत्मा की शुद्धि माननेवाला पंडित नहीं, गधा है! यह बात सुनकर सेठजी कुएँ पर चले गये और वहाँ नहाने वाले पंडित से कहा कि घर पर जो पंडितजी बैठे हैं, उन्होंने मछली के उदाहरण से यह प्रतिपादित किया है कि जल से आत्मशुद्धि नहीं हो सकती। आपका क्या उत्तर है इस पर? . ईर्ष्या से जले-भुने पंडित ने कहा :- “अरे वह तो पूरा बैल है! क्योंकि बैल स्वयं नहीं नहाता । उसे उसका मालिक ही जबर्दस्ती नहलाता है। नहाने का महत्त्व मनुष्य समझ सकता है, बैल नहीं।" वहाँ से सेठजी रसोईघर की तरफ बढ़े। वहाँ अपनी लडकी से कुछ कान में कहा और फिर वहाँ से बैठक रूम में चले आये। टेंबल के तीन ओर तीन कुर्सियाँ लगी थीं। एक पर सेठजी वैट गये और शेष दोनों कुर्सियों में से प्रत्येक पर एक-एक पंडित बैठा। सेटजी के इशारे पर उनकी कन्याने एक थाली में घास और दूसरी में भूसा परोस कर दोनों के सामने एक-एक थाली रख दी। फिर सेठजी की थाली में भोजन परोस कर उनके सामने रख गई। सेटजीने कहा :- “खाइये!" ६५ For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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