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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ■ मोक्ष मार्ग में बीस कदम है, स्वाद लोलुपता मन में होती है । पेट की भूख तो सात्त्विक आहार से भी मिट जाती , परन्तु मन की भूख उससे नहीं मिटती । वही पहले होटलों और फिर होस्पीटलों के चक्कर लगवाती है-धन का अपव्यय करवाती है। www.kobatirth.org मन की शुद्धि का एक उपाय यह है कि हम वर्तमान में जीना सीखें। भूत-भविष्य की चिन्ताओं से मन को बोझिल न करें। डार्विन ने कहा था कि मनुष्य बन्दर का विकास है, परन्तु यदि बन्दर से पूछा जाय तो वह कहेगा कि मनुष्य बन्दर का पतन है; क्योंकि वह भूत-भविष्य के भार से मुक्त नहीं है- मैं मुक्त हूँ- वर्तमान में स्थित हूँ- चिन्ताओं से ऊपर हूँ । भूत से हम प्रेरणा लें; भार नहीं, वर्तमान यदि उल्लासमय है- सात्त्विक है- शुद्ध है तो भविष्य निश्चित ही अच्छा होगा, इसलिए अच्छा यही होगा कि हम न भूतकाल में डूबें और न भविष्यकाल में बहें; किन्तु वर्तमानकाल में तैरें! नाव पानी में तैरती रहे तब तक कोई खतरे की बात नहीं है। खतरा तब शुरू होता है, जब नाव में पानी भरने लगता है । उसी प्रकार मन संसार की सतह पर तैरता रहे तब तक कोई बात नहीं; परन्तु मन में संसार (मोह-ममता - आसक्ति) का प्रवेश नहीं होने देना चाहिये । रसोईघर में चूल्हा जलाया जाता है। उससे निकला हुआ धुआँ कमरे में फैल कर छत को और चारों दीवारों को काला बना देता है। कमरे की सुन्दरता नष्ट हो जाती है। मन का भी यही हाल है। रागद्वेष की ज्वाला से निकले कषायों के धुएँ से वह कलुषित हो गया है। उसकी सुन्दरता समाप्त हो गई है। जब तक मन स्वच्छ नहीं हो जाता, तब तक उससे सौन्दर्य की, सुख शान्ति की आशा नहीं की जा सकती । गप्पा अजिए सत्तू || [ एक मात्र आत्मा ही अजित (जिसे जीता न गया ऐसा ) शत्रु है ] । यहाँ आत्मा शब्द मन के लिए प्रयुक्त हुआ है। उसी को वश में करना है, उसी पर विजय प्राप्त करनी है: मन के हारे हार है मन के जीते जीता।। जो मन के वश में हो जाते हैं वे जीवन संग्राम में पराजित हो जाते है । मन पर विजय ही वास्तविक विजय हैं। मन पर विजय पाने के लिए उसे मोडने की जरूरत है। उसकी चंचल वृत्तियों पर अंकुश लगाने की जरूरत है : [चित्तवृत्तियों को रोकना ही योग है ] 2 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३८ योगश्चितवृत्तिनिरोधः ॥ मन की भावना का पाप-पुण्य से अधिक सम्बन्ध है, कहा है : For Private And Personal Use Only
SR No.008726
Book TitleMoksh Marg me Bis Kadam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages169
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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