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७६ की आराधना तीन सौ साठ दिन की आराधना बन जानी चाहिये।
प्रभु महावीरने श्रमकी महत्ता प्रतिपादित करने के लिए अपने शिष्यों को "श्रमण'' और शिष्याओंको श्रमणी" शब्द से अभिहित किया था। वे अपना कार्य स्वयं अपने हाथ से करते हैं । उसके अतिरिक्त अध्ययनाध्यापन, विहार, गोचरी तथा सद्गुणों की साधना का श्रम तो करते ही हैं ।
उद्यम प्रत्यक्ष है और भाग्य अनुमान । अनुमान की अपेक्षा प्रत्यक्ष का महत्त्व अधिक माना जाता है; इसलिए उद्यम भाग्य से अधिक महत्त्वपूर्ण है । ____ कहते हैं-एक हाथसे ताली नहीं बजती और एक पहिये से गाडी नहीं चल सकती। उसी प्रकार भाग्य के साथ उद्यम भी ज़रूरी है । बिना उद्यम के भाग्य होते हुए भी प्रकट नहीं होता । राखके भीतर अंगारा छिपा हो तो फूकसे ही वह प्रकट होता है । फूक उद्यम है। प्रयत्नसे ही भाग्य की परीक्षा होती है । फक से यदि अंगारा प्रकट न हो केवल राख उड़े तो समझा जायगा कि भाग्य नहीं था; परन्तु फूक (उद्यम) ज़रूरी है ।
पुरुष की ७२ ग्रौर स्त्री की ६४ कलाएँ होती हैं, जिन्हें कोई जन्म लेने से पहले नहीं सीख सकता । सारी कलाएँ उद्यम से ही सीखी जाती हैं । मिट्टी से सोना, सीप से मोती और पत्थरों से रत्न उद्यम से ही निकाले जाते हैं । किसी विचारक की सूक्ति है :
"हो सकता है, तुम्हारा मोती एक और गोते का इन्तज़ार कर रहा हो !"
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