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मुसाफिर : "तो फिर क्या बात है ?"
मैनेजर : "बात यह है कि उस कमरे के ठीक नीचे वाले कमरे में बड़े मुल्ला वर्षों से टिके हुए हैं। वे शोरगुल या आवाज़ पसंद नहीं करते । यदि कोई ऐसी ध्वनि होती है तो वे ठहरने वालों से झगड़ने पहुँच जाते हैं । उनके इस विचित्र स्वभाव के ही कारण हमें वह कमरा सदा खाली रखना पड़ता है । यदि आप बिना आवाज़ किये उसमें रह सकें-चल फिर सकें तो हमें कमरा देने में कोई आपत्ति न होगी।" ___मुसाफिर ने मैनेजर की यह शर्त मंजूर कर ली। मैनेजर ने कमरे का नम्बर बताकर उसके ताले की चाबी मुसाफिर को सौंप दी । चाबी और सामान लेकर मुसाफिर उस कमरे में पहुँचा । सामान (सूटकेस आदि) एक ओर रखने के बाद अपनी थकावट मिटाने के लिए वह पलंगपर लेट गया । वह बूट खोलना भूल गया था; इसलिए लेटने में कुछ असुविधा होने लगी । उससे बचने के लिए पलंगपर लेटे ही लेटे उसने एक बूट खोला और उसे किंवाडकी ओर फेंक दिया । फटाक से जूते की आवाज हुई ही थी कि सहसा मैनेजर को दिये गये वचन की उसे याद आ गई । फलतः दूसरा बूट उसने धीरे से खोलकर पहले वाले बूट के पास रख दिया और तब दबे पाँव आकर फिर से पलंग पर लेट गया ।
नीचे बडे मुल्ला बैठे ही थे । उन्हों ने एक बूट के गिरने की आवाज़ तो सुनी थी; परन्तु दूसरे बूट की आवाज़ न आने से वे विचार में डूब गये: "मुसाफिर ने दूसरा जूता क्यों नहीं खोला ? और यदि खोला था तो उसकी आवाज़
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