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परिस्थितियाँ भी मनुष्य का भविष्य निर्धारित करती है। एक निष्कर्ष के अनुसार समाज से तिरस्कृत होने पर मनुष्य दार्शनिक, शासन से प्रताड़ित होने पर विद्रोही, परिवार से उपेक्षित होने पर महात्मा और नारीसे अनाहत होने पर देवता बन जाता है।
किसी विचारक ने मनुष्य के चार आश्रमों की तुलना गणित के चार मूल तत्त्वों से करते हुए कहा है कि ब्रह्मचर्याथम जोड़ के समान है; उसमें वृद्धि और शक्ति का संचय किया जाता है । दूसरा गहस्थाश्रम बाकी के समान है, जिसमें बुद्धि और शक्ति खर्च की जाती है। तीसरा वानप्रस्थाश्रम गुणा के समान है, जिसमें अनुभव मूलक ज्ञान की झपाटे से वृद्धि होती है और चौथा संन्यासाश्रम भाग के समान है, जिसमें अपने अनुभवों से प्राप्त उत्तम ज्ञान का समाज में वितरण किया जाता है।
लोग समुद्र के पास क्यों नहीं जाते ? इसलिए कि वह घमण्ड से कोलाहल करता रहता है- खारा जल उसके पेट में रहता है। समुद्र का जल जब बादलो में पहुँच कर जगत् को देखता है, तब उसका घमंड चला जाता है। उसमें नम्रता और मधुरता आ जाती है। नदी में कितना विनय है ? समुद्र को अपना सर्वस्व देती रहती है। फिर भी कहती है- मैंने कोई बस्तु न दी ! (न+दी-नदी) यह विनय ही उसे समुद्र से महान् बनाता है । पशु-पक्षी और मनुष्य उसके समीप जाते है और अपनी प्यास बुझा कर परम तृप्ति का अनुभव करते हैं। इसी प्रकार यदि मनुष्य में भी नम्रता हो- उसकी वाणी में मधुरता हो तो उसके प्रति लोगों का आकर्षण बढ़ जायगा।
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