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२२२ समाट कहें, वैसा करना जरुरी हो गया था। वे बड़ के झाड़ के नीचे ठहरा दिये गये। उसकी विशाल छाया में प्रतिनिधियों के लिए एक-एक पलंग डाल दिया गया। वे दिन-रात उसी के नीचे रहने लगे। भोजन भी उनके लिए वहीं पहुँचा दिया जाता था। शौच, स्नान आदि के लिए छुट्टी मिलती थी।
सब प्रतिनिधियों की नज़र हमेशा झाड़ पर ही लगी रहती और वे "हाय-हाय” करते रहते तथा सोचते रहते कि इतना बड़ा झाड़ है - पता नहीं, कब तक सूखेगा - कब अपने प्रश्न का उत्तर मिलेगा और कब अपने देश लौट कर हम अपने बीबी-बच्चों से मिल पायेंगे ।
छह महीनों बाद वृक्ष सूख गया। बड़ी खुशी से उन्होंने यह सूचना सम्राट को दी। सम्राट ने उत्तर दिया कि जिस प्रकार आपकी आहों से वृक्ष सूख गया, उसी प्रकार जिस बादशाह के लिए प्रजाजनों की अाहें निकलती हैं, वह अल्पायु होता है। यहाँ के सम्राट प्रजा की सेवा कर के आशीर्वाद लेते हैं; इसलिए दीर्घायु होते हैं।
'तुलसी' हाय गरीब को कबहु न निष्फल जाय । मुई खाल को साँससों लौह भस्म व्है जाय ॥
अन्त में भावना का प्रभाव बताने वाली एक छोटी-सी कया और सूनाकर मैं आज का अपना वक्तव्य समाप्त करुंगा। एक बादशाह घोड़े पर सवार होकर जंगल में शिकार खेलने गया। वहाँ साथियों से बिछड जाने के बाद भूख-प्यास और थकावट मिटाने के लिए एक खेत के निकट पहुँचा । खेत में गन्ने खड़े थे। खेत की मालकिन एक बुढिया थी ।
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