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भण्डारी गया और अपने नवाबके गौरव की रक्षा के लिए उस जूते को नीलामी में सबसे ऊँची बोली लगाकर आखिर इक्कावन हजार में खरीद लिया।
एक जगह एक फकीर किसी बादशाह के पास दौलत माँगने गया । उस दौलत से वह गरीबों की बस्ती में एक स्कूल के लिए भवन बनवाना चाहता था। बादशाह उस समय इबादत कर रहे थे और खुदा से अपने लिए दौलत माँग रहे थे। __यह देखकर फकीर लौटने लगा। बादशाह ने कहां : "आप बिना कुछ लिये ही लौट क्यों रहे हैं ?"
फकीर ने कहा : "मैं तो आपको बादशाह समझ कर आया था !"
बादशाह : "आप ठीक जगह पर आये हैं। मैं बादशाह ही हूँ। आइये।"
फकीर : "नहीं; आप तो मेरे ही जैसे भिखारी हैं। बादशाह वह होता. है, जो किसी से कभी कुछ नहीं माँगता । आप तो अल्लाह से अभी खुद दौलत माँग रहे थे। यदि आप अल्लाह से माँग सकते हैं तो क्या मैं उनसे नहीं माँग सकता ? मैं भिखारी का भिखारी क्यों बनू ?"
ऐसा कहकर फकीर वहाँ से चला गया। माँगने से मनुष्य का गौरव समाप्त हो जाता है।
तृणं लघु तरणातूलम् तूलादपि च याचकः ।
वायुना किन मोतोऽसौ याचयिष्यति मामपि ॥ [तिनका हलका होता है, तिनके से रूई हल्की होती है और रूई से भी हल्का याचक होता है। फिर भी हवा उस (याचक)
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