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जीवन दृष्टि _जिसमें फालतू (बेकार) अक्ल होती है, वही विवाद में समय नष्ट करता है. कबीर साहब अपने शिष्यों से कहते हैं :वादविवादे विषे घणां बोल्यां बहुत उपाध । मौन रहे, सबकी सहे सुमिरे नाम अगाध ।। महात्मा गांधी कहते थे :- “मौन सर्वोत्तम भाषण है. अगर बोलना ही हो तो कम से कम बोलो. एक शब्द से काम चल जाय तो दो शब्द मत बोलो.” मौन रहने वाला झूठ से बचता ही है, झगड़े से भी बच जाता है :मौनिनः कलहो नास्ति ।। [मौन रहने वाला झगड़ा नहीं करता]
झगड़ा शब्द से ही प्रारम्भ होता है. हम किसी को अपशब्द कहेंगे तो सामने वाला भीसुनने वाला भी अपशब्द कहे बिना नहीं रहेगा. हमें फिर उसके जवाब में कुछ कहना पड़ेगा और फिर से कुछ कठोर कर्णकटु शब्द सुनने पड़ेंगे. इस प्रकार झगड़ा चलता रहेगा. कबीर साहबने कहा है :
आवत गारी एक है, पलटत होत अनेक । 'कबिरा' जो नहिं पलटिये, वह एक की एक ।।
अगर हम गाली को पलटें नहीं-मौन रह जाए तो सामने वाला भी और कुछ नहीं बोलेगा. इस प्रकार झगड़ा शान्त हो जायगा.
गुजराती में दो कहावतें प्रचलित है :(१) नहीं बोल्यामां नव गुण (२) बोले ते वे खाय । अबोले त्रण खाय । ये दोनों कहावतें मौन के लाभ की ओर संकेत करती हैं. हिन्दी की भी ऐसी ही एक कहावत
एक चुप सौ सुख ।। लेकिन संस्कृत की कहावत सर्वोत्तम है, जिसमें मौन को सब प्रकार की सिद्धियों का-समस्त प्रयोजनों का साधन मानते हुए कहा गया है :“मौनं सर्वार्थसाधनम् ।।"
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