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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मितभाषिता : एक मौन साधना ८३ आज का मेडिकल साइन्स भी इस तथ्य की घोषणा करता है कि एक पौंड (४५० ग्राम) दूध पीने से जितनी शक्ति प्राप्त होती है, उतनी एक शब्द के उच्चारण से खर्च हो जाती है. इससे यह समझा जा सकता है कि कम-से-कम बोलने वाला अधिक से अधिक शक्तिशाली होता है. एक पाश्चात्य विचारक बेकन का कथन है- “मौन निद्रा के समान होता है, जो ज्ञान में नई शक्ति उत्पन्न करता है." दिन भर के काम से थका हुआ मनुष्य जब रात को नींद ले चुकता है, तब प्रातः उठते ही शरीर में नई शक्ति का अनुभव करता है; उसी प्रकार मौन रहने वाले के भीतर बोलने की शक्ति संचित होती रहती है. इस शक्ति का उपयोग दुष्टों के बीच कभी नहीं करना चाहिये :कोलाहले काककुलस्य जाते विराजते कोकिलकूजितं किम्? परस्परं संवदतां खलानाम् मौनं विधेयं सततं सुधीभिः ।। [जहाँ कौओं का झुण्ड कोलाहल कर रहा है-काँव-काँव कर रहा हो, वहाँ कोयल की कूक सुशोभित होती है क्या? जहाँ दुष्टों का परस्पर संवाद चल रहा हो, वहाँ सुबुद्धिमानों को लगातार मौन रखना चाहिये] जहाँ मूर्ख विवाद कर रहे हों, वहाँ भी विद्वानों को मौन रहने का सुझाव देते हुए कहा गया भद्रं भद्रं कृतं मौनम् कोकिलैर्जलदागमे । दुर्दरा यत्र वक्तार-स्तत्र मौनं हि शोभनम् ।। [बादलों के आने पर (आसमान में छा जाने पर) कोयलों ने मौन धारण करके अच्छा किया! अच्छा किया!! क्योंकि जहाँ मेंढक बोलने वाले हों, वहाँ मौन रहने में ही शोभा है] दुष्टों या मूों के साथ संवाद नहीं, विवाद होता है; क्योंकि वे लोग बकवास करते हैं. अकबर इलाहाबादी का एक शेर है शेख से छूटे, उलझे इंजन में, उसमें बकवक थी, इसमें भकभक है ।। वे धार्मिक विवाद से भी बचने की कोशिश करते थे. लिखा है :मज़हबी बहस मैने की ही नहीं। फ़ालतू अक्ल मुझमें थी ही नहीं ।। For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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