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ध्यान और साधना किसी विचारक ने लिखा है - “क्रोध समुद्र सा वहरा और आग सा उतावला होता है.
क्रोध मनुष्य को बहरा बना देता है, इसलिए वह मनमानी करता है. किसी की बात नहीं सुनता आग के समान उतावला होता है - जल्दबाजी में वह कुछ भी कर डालता है. एक सूक्ति है “क्रोध मूर्खता से शुरु होता है और पछतावे पर खत्म". क्रोधी अन्त में पछताता है, किन्तु जब पछताता है, तब तक बहुत कुछ हानि हो चुकी होती है. प्रभु महावीर ने क्या उपाय बताया है क्रोध का? उन्होंने कहा - "उवसमेण हवे कोहं ।।" [उपशम से क्रोध को नष्ट करना चाहिये.] प्रोफेसर की परेशानी :
अमेरिका के एक प्रोफेसर को गुस्सा करने की आदत थी. वात-बात पर उनका टेम्प्रेचर हाई हो जाता था. पढे - लिखे थे, समझदार थे, इसीलिए क्रोध के दुष्परिणामों को देखकर बाद में पछतावा भी करते थे, परन्तु वेचारे अपनी आदत से मजबूर थे. इस आदत में वे परेशान भी वहुत रहते थे.
उनकी परेशानी को देखकर उनके एक मित्र ने उन्हें एक उपाय बताया. उसके अनुसार प्रोफेसर साहब ने सौ कोरे लिफाफों का एक पैकेट लाकर अपने नौकर को दे दिया. साथ ही उससे कह दिया कि जब भी मुझे गुस्से में देखो, इस पैकट में से एक लिफाफा लाकर मेरे सामने मेज पर रख दिया करो.
नौकर ने मालिक के आदेश के आधार पर लिफाफा रखना शुरु कर दिया. उसे देखते ही प्रोफेसर साहव को स्मरण हो आता कि वे कुछ गलती कर रहे हैं. गुस्सा कोई अच्छी आदत नहीं है. काम तो शान्ति से भी बन सकता है, फिर गुस्सा करके अपने को और दूसरो को क्यों परेशान किया जाय. धीरे-धीरे उनकी आदत सुधर गई और जीवन भर के लिए पछतावे की परेशानी मिट गई. संत की सहिष्णुता : महाराष्ट्र के सन्त एकनाथ के विषय में यह प्रसिद्ध था कि वे गुस्सा नहीं करते. एक युवक ने इसे अस्वाभाविक समझा और उन्हें गुस्सा दिलाने के लिए उनके घर जा पहुंचा. उस समय
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