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जीवन दृष्टि यह सुनकर पत्नी हँस पड़ी. उसका गुस्सा गायब हो गया. गुस्से को गायव करने के लिए एक विचारक ने उपाय बताया है :
“यदि गुस्सा आ जाय तो मन ही मन एक से दस तक गिनती करो और अगर तेज गुस्सा हो तो सौ तक."
इसमें सहिष्णुता की ही बात कही गई है. एक उपाय मैं भी वताता हूँ - गुस्से को दूर करने का.
मान लीजिये, आप के घर में टेलीफोन की घंटी बजती है और बातचीत करने पर मालूम होता है कि सामने वाला व्यक्ति आपका विरोधी है - दुश्मन है. फोन पर वह आपको अपशब्द सुनाने लगा है :- “तुम ठग हो, तुम धूर्त हो - लुच्चे हो - बदमाश हो - चोर हो..." इस प्रकार सैंकड़ों गालियां आपको देकर अपने दिल की भड़ास निकाल देता है. उसके वाद आपकी प्रतिक्रिया जानने के लिए वह क्षण भर चुप रहता है. ठीक उसी समय आप दो शब्द बोल दीजिये – “रोंग नंबर"
सामने वाला निराश होकर मुँह लटका कर बैठ जायेगा कि मैंने गुस्से में न जाने किसको क्या - क्या कह डाला. वह अपने आप पछताता रहेगा और शान्त हो जायेगा.
इसी प्रकार प्रत्यक्ष भी आपको कोई आकर हजार-हजार अपशब्द कह जाय - गालियां दे जाय, आप मन में कह दीजिये – “रोंग नंबर” इससे आप पर उन अपशब्दों का कोई प्रभाव नहीं पडेगा.
पागल का उपचार यह नहीं है कि आप भी पागल बन जाय, यदि कुत्ता हमें काट खाये तो क्या हम भी उसे काटने दौड़ते हैं. कभी नहीं, परन्तु व्यवहार में हम यह वात भूल जाते हैं, जो भयंकर साबित होती है.
एक साधु किसी बगीचे में ठहरा हुआ था. वहाँ किसी अन्य व्यक्ति ने घुस कर चुपचाप पके - पकाये फल तोड़ लिये. माली ने फल कम देखकर उस साधु पर शंका की. उसे डंडे से पीटने लगा. साधु इस परिषह को बहुत शान्ति से सहता रहा, परन्तु उसके शिष्यों से गुरुजी का यह अपमान सहा नहीं गया. वे सब उस माली से झगड़ने लगे - उसे भला - बुरा कहने लगे.
ठीक उसी समय कुछ सज्जन बगीचे से बाहर जाते हुए दिखाई दिये. साधु ने उनसे जाने का कारण पूछा - तो वे बोले - “हम आपको वन्दन करने आये थे, परन्तु आपके शिष्यों का क्रोध देखकर हमारी श्रद्धा आपके प्रति समाप्त हो गई, इसलिए हम वन्दन किये बिना ही लौट रहे हैं."
क्या बात हुई? शिष्यों के क्रोध ने गुरुदेव को भी अयोग्य साबित कर दिया, यद्यपि गुरुदेव सुयोग्य ही थे.
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