________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
ध्यान और साधना लेटें तो तत्काल आसानी से आपको निद्रा आ जाती है, परन्तु यदि आप स्थान में कुछ परिवर्तन कर देते हैं तो आपको निद्रा के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ती है. कुछ देर से निद्रा आती है. इस प्रकार सिद्ध होता है कि किसी भी कार्य के लिए निश्चित स्थान का अपना महत्त्व ोता है.
आप भी अपनी ध्यान साधना के लिए एक ऐसा स्थान निश्चित कर लिजिये, जहाँ सब प्रकार की अनुकूलताएँ हों, कोई गड़बड़ी न हो-विक्षेप न हो. एक बार स्थान निश्चित कर लेने के वाद फिर उसमें कोई परिवर्तन न करें. कार्यवश कहीं अन्यत्र जाना पड़ जाय तो बात दूसरी है.
तीसरी वात है-नियमितता. महात्मा गांधी नियमित प्रार्थना करते थे, वे कहते थे-कितना भी जरूरी काम हो, मैं प्रार्थना की उपेक्षा नहीं कर सकता. नीतिकार भी ऐसा लिख चुके हैं :
शतं विहाय भोक्तव्यम्, सहस्त्रं स्नानमाचरेत् । लक्षं विहाय दातव्यम्, कोटिं त्यक्त्वा प्रभु स्मरेत् । । [सौ आवश्यक काम भी सामने हों तो उन्हें छोड़ कर पहले भोजन करना चाहिये. हजार काम छोड़कर स्नान और लाख काम छोड़ कर दान करना चाहिये. परन्तु करोड़ काम छोड़ कर प्रभु का स्मरण करना चाहिये.] इस श्लोक में प्रभु स्मरण का महत्त्व दान से सौ गुना अधिक घोषित किया गया है. चौथी वात है दिशा की, यह भी निश्चित कर लेनी चाहिये. साधना के लिए पूर्व और पश्चिम अधिक अनुकूल है, उत्तर और दक्षिण प्रतिकूल है, क्योंकि उत्तरी ध्रुव और दक्षिणी ध्रुव मन को अध्रुव (चंचल) बना देते हैं. पूर्व और पश्चिम इन दोनों दिशाओं में भी पूर्व दिशा अधिक अनुकूल मानी गई है. इसलिए ध्यान के लिए प्रातःकाल पूर्वदिशा में मुँह करके बैठे
पांचवीं बात है- आहार शुद्धि. आपका आहार शुद्ध हो. सात्त्विक हो, परिमित हो यह भी साधना के लिए जरुरी है. अनियमित अशुद्ध गरिष्ठ आहार से प्रमाद पैदा होता है.
छठी वात है- वस्त्रों की शुद्धि. साधना के लिए जिस वस्त्र का आप उपयोग करें, वह स्वच्छ हो और आपका खुद का हो, साथ ही वह वस्त्र किसी अन्य व्यक्ति के उपयोग में आया हुआ न हो.
सातवीं वात है- संख्या की. पहले जितनी संख्या में जाप करना हो, वह न्यूनतम संख्या निर्धारित कर ली जाय. ऐसा न हो कि आज एक माला फिराई, कल पच्चीस और परसों एक भी नहीं. पहले निर्धारित संख्या में नियमित जाप किया जाय और फिर अधिक गुंजाइश हो तो धीरे-धीरे संख्या बढ़ाई जाय. याद रखने की बात यह है कि जाप में क्वांटिटी की अपेक्षा क्वालिटी अधिक महत्त्वपूर्ण होती है. क्वालिटी (शुद्ध भावना) के अभाव में केवल क्वांटिटी (संख्या) की वृद्धि की गई तो उससे आत्मा की पुष्टि नहीं मिलेगी. मनोविकारों को ही पुष्टि
For Private And Personal Use Only