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जीवन दृष्टि
धूम्रपानकर्त्ता, शराबी, मांसहारी लोग वहाँ की कप - डिश में और गिलास में मुँह डाल जाते हैं.. उनके अशुद्ध परमाणुओं के साथ अशुद्ध विचार भी आपके भीतर पहुँच जाते हैं, जो मानसिक विकार पैदा करते हैं.
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या पत्नी के द्वारा प्रेम से बनाया हुआ शुद्ध स्वच्छ सात्त्विक स्वादिष्ट भोजन जिन्हें घर पर प्रतिदिन मिलता हो, उन्हें होटल की शरण में जाने की जरूरत भी क्या है ?
वहाँ जाने से पैसों की बर्बादी, स्वास्थ्य का नाश और सोसायटी भी ऐसी, जो आपको गुमराह करती हो - गलत रास्ते पर ले जाती हो- दुर्व्यसनों में फँसा कर आपका जीवन बर्बाद करती हो. एक भी लाभ हो तो बताइये !
यदि आप तन और मन से स्वस्थ्य रहना चाहते हैं तो मेरी सलाह मानिये होटल में जाना बन्द कर दीजिये. उसका त्याग कर दीजिये. होटल में बनी किसी भी वस्तु पर आपका मन आकर्षित नहीं होना चाहिये.
आज मैंने आपको त्याग करने के लिए इतनी सारी फुटकर बातें इसलिए बताईं कि आपको विचार करने का पर्याप्त अवसर मिल जाय.
आप इच्छा से करें या अनिच्छा से करें, कुछ-न-कुछ त्याग आपको करना ही है. यही मेरा पारिश्रमिक है, जिसकी आप सब पाठकों से मुझे अपेक्षा है. पहले आप अच्छी तरह सोच लीजिये कि कौनसा त्याग आपसे भलीभांति जीवन-भर निभ सकेगा. फिर मेरे पास आइये. यह तो प्रेम का सौदा है. इसमें स्वार्थ और परमार्थ दोनों हैं. मुझे से त्याग की प्रतिज्ञा ग्रहण करने पर मेरी स्मृति भी आपके साथ जुड़ जायगी, जो धीरे-धीरे आत्म सुधार और आत्म विकास के मार्ग में आपको बढ़ाती रहेगी. आपको सदाचारी बनने के लिए प्रेरित करती रहेगी.
सदाचारी बनने की प्रेरणा धर्म- स्थानों से मिलती है. साधु धर्मस्थान का अनुमोदन करता है, अन्य स्थान का नहीं.
गुजरात के महामन्त्री ने अपने नवनिर्मित भवन को दिखाने के बाद एक बाल साधु से कहाः " मेरे पुण्योदय से ही आपने यहाँ पधारने की कृपा की है ऐसा मैं मानता हूँ !”
बालसाधु ने कहा :- “भवन कैसा भी बना हो, इसमें धार्मिक कार्य तो होंगे नहीं; तब मुझसे इसके अनुमोदन की अपेक्षा आप क्यों रखते हैं?"
महामन्त्री सावधान हो गये। जैन साधु भवन निर्माण जैसे कार्य का अनुमोदन नहीं कर सकते, फिर भी अनुमोदन पाने की इच्छा से मैंने भवन दिखाकर ऐसी बात कही- इसका उन्हें बहुत खेद हुआ. एक बाल साधु के सामने वे अज्ञानी साबित हुए.
अन्त में अपनी भूल का पश्चात्ताप करते हुए चरणों में प्रणाम करके महामन्त्री ने कहा " आज से अपना यह भवन धर्म कार्यों के लिए में अर्पित करता हूँ. मेरा भवन आज से समाज
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