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जीवन दृष्टि है. श्रम से ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है. दीर्घायु के लिए उक्त दोहे में चौथी बात कही गई है - चौगुनी हंसी. मानसिक सन्तोष प्रसन्नता का जनक है :
अजधन गजधन वाजिधन, सबै रत्न धनखान । जब आवै सन्तोषधन, सब धन धुरी समान ।। बकरे, हाथी, घोड़े और रत्न तो हैं ही; परन्तु जव सन्तोष धन प्राप्त हो जाता है, तब सारे धन धूल के समान मालूम होने लगते हैं,
प्रवचन के माध्यम से रात्रि भोजन के निषेध का प्रतिपादन करके मैं चला जाऊं और मैंने बहुत अच्छा प्रतिपादन किया-ऐसी प्रशंसा करते हुए आप अपने घर लौट जायें तो इससे न मुझे कुछ लाभ होगा और न आपको. मैंने बोलने का जो परिश्रम किया, उसका कुछ पारिश्रमिक तो मुझे मिलना ही चाहिये; अन्यथा यह तो वैसी ही दशा होगी, जैसी राजा भोज के दरबार में एक कवि की हुई.
कवि ने राजा भोज की प्रशस्ति में कहा था कि आप दानवीर कर्ण के अवतार हैं. आपके समान उदार इस समय दुनिया में कोई नहीं है. भरी सभा में भोज ने इस पर कहा कि आपको कल सवा लाख स्वर्ण मुद्राएँ दे दी जायेंगी.
कवि तो यह सुनकर हर्ष विभोर हो गया. वह खुशी का यह समाचार सुनाने के लिए वहाँ से सीधे अपने घर गया. उस जमाने में कोई बैंक नहीं थी. किसी व्यापारी के यहाँ रखने पर अमानत में खयामत होने की सम्भावना थी. घर में रखने पर चोरों का डर था. आखिर उसने तय किया कि रसोई घर के आंगन में गड्ढा खोदकर सारी स्वर्ण मुद्राएँ गाड़ दी जाय. मुट्ठी भर स्वर्ण मुद्राएँ बाहर रक्खी जायें, खर्च होने पर आवश्यकतानुसार निकाली जाती रहे. इस विचार को मूर्तरूप देने के लिए कवि और उसकी पत्नी दोनों मिलकर रसोईघर के कमरे में रात-भर गड्ढा खोदते रहे.
प्रातःकाल स्नान करके नये वस्त्र पहिनकर कवि राजसभा में जा पहुँचा कि सिर मुंडाते ही ओले पड़े! राजा भोज ने पूछा- “आप कैसे आये?"
कवि - “आपके बुलाने पर ही मैं आया हूँ. कल सभा के बीच में मेरी प्रशस्ति सुनकर आपने कहा था कि सवा लाख स्वर्ण मुद्राएँ आपको भेंट की जायेंगी. कल आकर आप ले जाइये."
राजा ने हँसकर कहा - "राजा कभी उधार नहीं रखता. जो कुछ देना होता है, तत्काल दे देता है. आपने मेरी कर्ण से तुलना की, किन्तु कर्ण क्या कभी उधार रखता था? फिर मैंने यही तो कहा था कि कल आपको सवा लाख स्वर्णमुद्राएँ दे दी जायेंगी; परन्तु कल हमेशा कल ही रहता है. वह कभी आज नहीं बन सकता. तीसरी सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण बात यह है कि अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन करके आपने मुझे शब्दों से प्रसन्न किया तो मैंने भी सवा लाख
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