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जीवन दृष्टि
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देखा नहीं) उनके कुण्डलों को नहीं जानता ( क्योंकि कभी मैंने भाभीजी के मुखारविन्द को देखा ही नहीं) केवल नूपुरों को पहचानता हूँ, क्योंकि उनके चरणों में प्रतिदिन मैं प्रणाम करता रहा हूँ ! ऐसा महान् आदर्श जिसके जीवन में हो, वह मनुष्य नहीं, देव है, बल्कि देवों से भी वन्दनीय है. दशवैकालिकसूत्र में कहा गया है :
“देवावि तं नमंसंति, जस्स धम्मे सया मणो । "
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[ जिसका मन सदा धर्म में रहता है, उसे देव भी नमस्कार करते हैं . ]
जीवन में सदाचार का स्थान :
डॉक्टर रोगी की जाँच करता है और देखता है कि हार्ट बराबर काम कर रहा है तो कह देगा - " चिन्ता की कोई बात नहीं रोगी ठीक हो जायेगा.”
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यदि उसे पता चल जाय कि हार्ट में गड़बड़ है तो कहेगा- “ इस रोगी पर विशेष ध्यान रखना है. पता नहीं, कब चल बसे. '
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शरीर में जो स्थान हार्ट का है, जीवन में वही स्थान सदाचार का है. वही मानसिक निर्मलता का आधार है - आत्मा की तृप्ति का साधन है. वही आन्तरिक शक्ति है.
बहुत से लोग टॉकिज में या टी. वी. के सामने परिवार के साथ बैठकर नाचगान या मारधाड़ से भरी हुई फिल्में देखते हैं. क्या सीखते हैं वहाँ 'काम' का आदर्श या श्रीराम का आदर्श ? तुलसीदास ने लिखा है
“ जहाँ काम तहाँ राम नहिं, जहाँ राम नहिं काम । "
हमारा
कामुक दृष्टि हृदय के राम को नष्ट कर देती है. वहाँ पतन ही पतन है, उत्थान नहीं.: ध्येय क्या है - उत्थान या पतन ?
पुण्यस्य फलमिच्छन्ति । पुण्यं नेच्छन्ति मानवाः । । पापस्य फलं नेच्छन्ति ।
पापं कुर्वन्ति यत्नतः । ।
इस प्रश्न पर यदि जनमत संग्रह किया जाय तो पतन के पक्ष में एक भी मत नहीं पड़ेगा. शत प्रतिशत मत उत्थान के पक्ष में पड़ेंगे, क्योंकि पतन के मार्ग पर चल कर भी लोग इच्छा उत्थान की ही रखते हैं
[मनुष्य पुण्य का फल (सुख) तो चाहते हैं, परन्तु पुण्य (परोपकार) करना नहीं चाहते. इससे विपरीत पाप का फल नहीं चाहते, परन्तु सावधानी पूर्वक पाप करते रहते हैं . ]
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