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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि १४ गेंदा, इतने बड़े साम्राज्य का एक छत्र शासक नहीं होने से विदेशियों ने इस धरती पर अपने पैर जमाये . हमारी संस्कृति में अपनी पाश्चात्यता का बीजारोपण किया जिसका फल यह हुआ कि हम अपनी संस्कृति से विमुख होते गये. आत्मा का धर्म : अनन्त उपकारी जिनेश्वर परमात्मा ने जगत के प्राणी मात्र के कल्याण के लिए जो मंगल प्रवचन दिया उसमें शुद्ध आत्मा का परिचय दिया. जहाँ कोई सम्प्रदाय नहीं, जहाँ कोई जाति नहीं, जहाँ कोई देश नहीं, जहाँ कोई भाषा नहीं. उन्होंने आत्मा की भाषा में ही परिचय दिया. वहाँ किसी प्रकार का कोई मतभेद नहीं क्योंकि जहाँ आत्मा है, वहाँ साम्प्रदायिकता नहीं होती. इसको छोड़कर जब धर्म की चर्चा करें तो सम्प्रदाय की बात आयेगी. सूर्य का प्रतिविंव, अगर आप हजार वर्तन रखकर देखते हैं तो भी हर वर्तन में आपको समान प्रतिबिंब नजर आयेगा. आत्मा की दृष्टि से जगत को देखे, हर आत्मा में आप स्वयं को देख पायेंगे, स्वयं के अन्दर ध्यान की एकाग्रता में देखे तो सर्व आत्माओं का परिचय सहज में ही हो जायेगा. परमात्मा महावीर ने यह नहीं कहा कि मात्र मेरा कल्याण हो, मेरे परिवार का कल्याण हो, परमात्मा की उपासना मेरे लिए मोक्ष का कारण बने. ऐसा विचार करना भी अपराध है. उन्होंने कहासाधना में भी सर्व आत्माओं को लेकर चलें. जगत के प्राणी मात्र के कल्याण की भावना से ही साधना में सफलता मिलेगी. आपका व्यवहार शुद्ध होना चाहिये ताकि अन्तशुद्धि सहज में आ जाय, परन्तु हमारी आदत ऐसी होता है कि आईने के अन्दर स्वयं का मुंह देख ले और उसमें चेहरे पर कोई दाग नजर आ जाय तो हम आईना साफ करते हैं पर इससे क्या चेहरे पर लगे दाग साफ हो जायेंगे. हमारा तरीका ही ऐसा विकृत बन गया है जिससे अन्तर की शुद्धि नहीं मिल पाती है. परमात्मा ने इसीलिए चिन्तन दिया कि - दूसरों को नहीं, पहले स्वयं को देखो. परन्तु आज का फैशन है - 'परोपदेशे पाण्डित्यं . ' किन्तु उन शब्दों में प्राण कहाँ से आयेगा. पहले अपने स्वयं की आत्मा में शुद्धि प्राप्त करें. साधना की शुद्धता से ही आपके शब्दो में प्राण आयेगा तभी श्रवण करने वाले के हृदय में निश्चित ही परिवर्तन आयेगा. चेतना में परिवर्तन हो जायेगा, रूपान्तर हो जायेगा. इतनी दिव्य शक्ति है साधना में. श्री कृष्ण की उपसिका मीरा अपने समर्पण भाव में इतनी मग्न हो गयी कि समर्पण ही उसकी आत्मा का धर्म बन गया. इतना सुन्दर समर्पण भाव कि जगत् के हर प्राणी में उसे श्री कृष्ण नजर आने लगे. उसके शरीर में ऐसा परिवर्तन आ गया कि जहर का प्याला भी अमृत बन गया. वह कोई मंत्र नहीं था, उसके समर्पण भाव ने शरीर के परमाणुओं में ऐसा परिवर्तन कर दिया कि सारा शरीर ही अमृत बन गया और वह जहर का प्याला भी अमृत तत्व में विलीन होकर अमृत बन गया. परमात्म भक्ति का यह पुण्य प्रभाव कि जो जहर भी शरीर For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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