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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३ धर्म है, धर्मादा नहीं तो और क्या है ? यह सारा दोष-धर्म व्यवस्था की उपेक्षा का ही परिणाम है. आज अमेरिका के लोग हमारे धर्म को स्वीकार कर रहे हैं, वहाँ मन्दिर बन रहे हैं. आप आश्चर्य करेंगे कि मात्र अमेरिका में साढे चार लाख लोग जैन बने हैं. चालीस से पचास लाख लोग हिन्दू वने हैं. वे इस वात को हमारे देश का गौरव मानते हैं कि भारतीय दर्शन के अन्दर जो है, वह विश्व के किसी भी अन्य धर्म में नहीं. वे हमारी वेशभूषा को पहनते हैं, चोटी रखते हैं, तिलक लगाते हैं. बड़े गर्व से अपने को हिन्दु या जैन कहते हैं, आप पेन्ट सूट पहन कर उनकी नकल करते हैं! वे धोती दुपट्टा पहन कर बाजार में हरे राम हरे कृष्ण गाते हैं. आपसे कई गुना अधिक श्रीमंत हैं. भौतिक दृष्टिकोण से उनके पास कोई कमी नहीं है. कमी है तो विचार दर्शन की और जैसे ही उनके पास विचार पहुंचा, वे धन्य हो गयें. डॉ. रोज, पश्चिम जर्मनी के माने हुए विद्वान यहाँ आये तो मेरे पास भी रहे. वे भगवती सूत्र का अनुवाद कर रहें हैं. जर्मनी के डॉ. ब्राउन भी संस्कृत के माने हुए विद्वान हैं, वे मेरे परिचय में हैं. वे जव दिल्ली आये तो उनसे भी मिलना हुआ. उस समय मैंने पूछा- आप जर्मनी से क्या लेकर आये ? डॉ. ब्राउन ने उत्तर दिया- महाराज, हम तो आपके विचार का वैभव चुराने आये हैं. आपके पास जो संस्कृति का धन है, उसका हमारे यहाँ वड़ा दुष्काल है. आप आशीर्वाद दीजिए कि मैं यहाँ से कुछ ले जाने मैं समर्थ बनूं. ये थे उस देश के बहुत बड़े विद्वान के उद्गार. किन्तु आज देश में ठीक इसके विपरीत स्थिति है. आज का युवक पश्चिम की नकल करना चाहता है. 'देशी मुर्गी और विलायती चाल' की कहावत शत प्रतिशत हमारे यहाँ सही हो रही है. पश्चिम में हमारी संस्कृति को अपनाया जा रहा है. वहाँ की औरतें जो अर्द्धनग्न ही रहती आईं हैं- अब साड़ी पहनकर राम धुन गाती हैं. आनन्द मनाती हैं. वे लज्जा और शील को समझने लगी हैं. वहाँ हालात इतने सुधरे हैं कि जहाँ जिन गांवो में प्रचार अच्छा रहा वहाँ सिनेमा रेस्टोरेन्ट तक वन्द हो गयें. क्लबों और कैवरों को तो अव वहाँ घृणा की दृष्टि से देखा जाने लगा है. पश्चिम की छोड़ी हुई सभ्यता को हमने अपना लिया है. कैसी विडम्बना है सारे संसार को 'अध्यात्म का पाठ पढ़ाने वाला भारत ही पश्चिमी सभ्यता का दास हो गया है, धर्म स्थानों की जगह कैवरे डांस, होटल व रेस्टोरेन्ट ने ले ली है. सिनेमा के माध्यम से आपको किस संस्कृति का परिचय कराया जा रहा है ! मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं कि विडियो के बुखार ने हमारी संस्कृति को और अधिक नग्न कर दिया है. यह सव कैसे हुआ, क्यों हुआ ? इसका कारण क्या है ? कारण स्पष्ट है. मुनियों की यह धरती विदेशी आक्रमणों के कारण निरन्तर वेजान व गूंगी होती गई. यवन देशों से आने वाले विदेशियों ने इस पतित पावनी धरती को जैसा चाहा वैसा For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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