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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि ज्यों ही कोई व्यक्ति दिखा, रटे-रटाये शब्द बोल देता – “आजादी, फ्रीडम, स्वतन्त्रता!" मुनिराज ने यह सुना तो सेठ मफतलाल से बोले – “सेठजी आप तो श्रावक हैं और अपनी भावना यही रहती है कि किसी भी आत्मा को बंधन में नहीं रखें. आत्मा को भी शरीर के बंधन से मुक्त करने की भावना रहती है और आपने तोते को पिंजरे में बंद कर रखा है. ये श्रावका का आचार नहीं है. अगर ये आजादी की अपेक्षा रखता है तो इसे आजाद कर दो." सेठ मफतलाल ने मुनिराज की आज्ञा का पालन किया और तोते को पिंजरे से आजाद कर दिया. मगर तोता आदत से मजबूर कि पुनः पिंजरे में आ घुसा. सेठ ने देखा-शायद पूर्व-जन्म के संस्कार हैं, उसे खाना दिया और सायंकाल को ले जाकर स्टेशन के पास छोड़ आये. तोता, जो बंधन को ही प्रिय मान बैठा था, भला आजाद कैसे रहता. पुनः पिंजरे में आ बैठा. सेठ ने तीन दिन तक प्रयास किया, पर तोता वहीं-का-वहीं रहा. सेठ ने सोचा ये वाहर जाने को तैयार नहीं, मात्र इसके शब्दो में ही आजादी दिखती है, आचरण में शून्य है. संयोग से कुछ दिनों बाद मुनिराज का पुनः आगमन हुआ. तोते को पिंजरे में देखा तो सेठ से बोले - “श्रावकजी, आपने मेरे आदेश का पालन नहीं किया.” सेठ ने कहा - “भगवन् मैं लाचार हूँ, आपके आदेश का कई बार मैंने पालन किया पर यह आदत से मजबूर कि बंधन को ही प्रिय समझ बैठा है. इसके शब्दों में आजादी की भावना हैं, पर आचरण में शून्य है." मुनिराज सेठ का आशय समझ गये. तो हमारी भी यही स्थिति है. आज रोज दिन में कई बार सुवह प्रतिक्रमण में, फिर प्रवचन में, फिर गुरु-वन्दन में, फिर शाम को प्रतिक्रमण में प्रार्थना करते हैं - “महाराज, मुझे मोक्ष चाहिये, बंधन से मुक्त जीवन चाहिये. संसार के बंधन से निकलना है.” । उपाश्रय में बैठे तो मन में यही भाव पैदा होते हैं. जब पुनः संसार के कार्यों में लगते हैं तो इन भावनाओं का अन्त हो जाता हैं. तोते की तरह चिल्लाते तो हो कि संसार से विरक्त होना हैं, पर जब विरक्त होने का समय आता है तो पुनः तोते की तरह अपने पिंजरे में लौट जाते हो. कहाँ तक आपका यह नाटक चलेगा? श्मशान से मिलने वाला वैराग्य श्मशान तक ही रह जाता है. किसी ने मुझ से पूछा - "महाराज, क्या मसानिया वैराग भी सार्थक हो सकता है?" मैंने कहा - "हां हो सकता है, यदि तुम श्मशान से सीधे ही उपाश्रय चले आओ." जब तक लोहा गर्म है, उस पर चोट करना आसान है, ठंडे लोहे पर हथौड़ा मारते हैं तो हथौड़ा ही टूट जायेगा, लोहे पर असर ही नहीं होगा. मैं भी यही कहता हूँ कि जब आप में मसानिया वैराग्य जगे, सीधे मेरे पास चले आइये. मैं अपने प्रवचन रूपी हथौड़े से आपके अन्दर के गर्म लोहे पर चोट कर परमात्मा की भक्ति करने का रूप प्रदान कर दूंगा. उसे एक निश्चित आकार प्रदान कर दूंगा. For Private And Personal Use Only
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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