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मंगल प्रवचन से जीवन की पूर्णता
प्रवचन की महत्ता :
अनन्त उपकारी जिनेश्वर परमात्मा ने प्रवचन के माध्यम से मोक्ष-मार्ग का परिचय दिया दीर्घकाल की साधना से स्वयं ने जो भी प्राप्त किया, उसे करुणा-भाव से और परम वात्सल्य से जगत् को अर्पण कर दिया.
जिनेश्वर भगवन्त ने प्रवचन के माध्यम से परमात्मा तक पहुंचने की एक प्रक्रिया वतलाई कि किस प्रकार जीवन की साधना सत्य की भूमिका के द्वारा सफल वने? जीवन किस प्रकार से सत्य के आचरण पर प्रतिष्ठित हो ? जीवन की सम्पूर्ण धर्म-क्रिया आचरण के द्वारा अभितप्त हो और किस प्रकार यह मूर्छित आत्मा की जो वर्तमान अवस्था है, उसके अन्दर जागृति प्राप्त हो. वो सम्पूर्ण उपाय और उसका मार्गदर्शन प्रवचन के द्वारा प्रदान किया. मात्र उस प्रवचन के अन्दर से यदि थोड़े-वहुत विचारों को हृदय के अन्दर उतार लिया जाये, तो मेरे ख्याल से चित्त की पवित्रता तथा स्थिरता को व्यक्ति सहज में ही प्राप्त कर लेगा.
दूध को जमाने के लिए एक जरा-से दही की जरूरत पड़ती है, चाहे वो ५ लीटर हो या १० लीटर हो. उसमें एक चम्मच दही डाल दिया जाय तो वह दूध को स्थिर कर देता है, उसका रूपान्तर कर देता है. परमात्मा के मंगल-प्रवचन का यदि चिन्तन कर लिया जाए तो यह मन की जो चंचलता है, व्यग्रता है, चित्त की अनादि-अनन्त-कालीन अस्थिरता है, उसकी स्थिरता के लिए, जीवन के रूपान्तर के लिए एक जरा-सा चम्मच यदि प्रवचन डाल दिया जाये तो उससे समग्र चित्त को स्थिरता मिल जायेगी, मन के शुद्धिकरण का कारण बन जायेगा.
पानी यदि स्थिर है और उसमें यदि आप निरीक्षण करते हैं तो चेहरे का प्रतिविम्व नजर आ जायेगा, परन्तु यदि पानी में अस्थिरता है तो उसके अन्दर कभी आपका चेहरा स्पष्ट नहीं दिखेगा उसी प्रकार मन के अन्दर अगर अपवित्रता हो, मलिनता हो, विचारों की चंचलता हो, व्यग्रता हो तो मन के अन्दर कभी आत्मा की अनुभूति आप प्राप्त नहीं कर सकेंगे. आपको उसी मन का स्थिरीकरण करना है, शुद्धिकरण करना है. प्रवचन उपचार है :
सेठ मफतलाल एक वार दिल्ली गये. वहाँ उन्होंने तोता बेचने वाले देखे. आजादी की लड़ाई का समय था, अतः तोता वेचने वालों ने तोते को सिखा रखा था – “आजादी, फ्रीडम, स्वतन्त्रता!" तोता यही वोलता. सेठ मफतलाल को तोता पसंद आया तो १०० रुपये देकर तोता खरीद लिया और पाली आ गये. कुछ दिन वाद, संयोग ऐसा कि संत मुनिराज का आगमन हुआ. संत महाराज सेठ मफतलाल के घर पहुंचे. तोते का स्वभाव ही ऐसा पड़ गया था कि
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