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जीवन दृष्टि मात्र विषय कषायों का पोषण होगा, मात्र संसार में आगमन होगा और वह व्यक्ति अपनी अज्ञान दशा में उस कार्य को आमन्त्रण देगा जो आत्मा को घायल करने वाले हैं. आत्मा को रूष्ट करने वाले हैं. यह अपनी अज्ञान दशा के लक्षण हैं.
अज्ञान दशा में भी ज्ञान का प्रकाश पुंज प्राप्त करना है. प्रकाश के अन्दर में से प्रयत्न को उपस्थित करना है जिससे जीवन की अनादि कालीन वासना से मैं अपनी आत्मा को मुक्त करूँ और मेरी आत्मा जागृत प्रकाश के अन्दर परमात्मा के आदेश का परिपूर्ण पालन करने वाली आत्मा बने. भक्ति का बन्धन, प्रेम का बन्धन : संत तुलसीदास एक बार काशी में थे. बड़े अच्छे विद्वान पंडित सज्जन पुरुष उनके सत्संग में आयें. तुलसीदासजी जो राम के परमभक्त, परम उपासक थे, ने विद्वानों से कहा - आज मैं एक नयी बात आपको सुनाना चाहता हूँ. आज तक तो आपने राम की रामायण सुनी. मेरे द्वारा राम का कीर्तन सुना परन्तु जो बात मैं आज आपको बतला रहा हूँ, उसका ज्ञान भी मुझे आज ही मिला. आज ही मैंने उस वस्तुस्थिति को जाना. अब आप लोग समझ लेना कि आज तक मैं कहता रहा हूँ कि राम सर्वशक्तिमान है. राम के अन्दर प्रचण्ड शक्ति छिपी हुई है परन्तु मेरी यह धारणा गलत हुई. राम कायर है, राम कमजोर है. सर्वशक्तिशाली है तो संत तुलसीदास.
पण्डितों ने विचार किया-कहीं भक्ति का अतिरेक पागलपन तो लेकर नहीं आया. कहीं दिमाग तो खराब नहीं हो गया. पण्डितों ने संत तुलसीदासजी से कहा- जरा स्पष्टीकरण करके बतायें.
तुलसीदास जी ने कहा- राम को मैंने अर्न्तहृदय में, मन के पिंजरे में बंद करके रखा है, और ताकत नहीं कि राम मेरे मन से बाहर चले जाये. तुलसीदास इतना सर्वशक्तिमान है कि राम को भी अपने मन के पिंजरे में बांध कर रख लिया है. राम की ताकत नहीं कि वह मन के पिंजरे से बाहर चले जायें. इसी अपेक्षा से मैंने कहा कि राम कायर है, कमजोर है. और तुलसीदास सर्व शक्तिमान है जो राम को भी अपने मन के बंधन में रख सकता है.
तो भक्ति ऐसी होनी चाहिये कि प्रभु आपके मन के बंधन में बंध जाये. आपकी इच्छा के बिना वहाँ से न निकल सके. भक्ति का बंधन, वो प्रेम का बंधन बन जाय कि बिना आमंत्रण के प्रभु आपके मन मन्दिर में पधार जाए. एक में शांति, अनेक में अशांति : यदि आप आत्म चिन्तन में जाते हैं तो चिन्तन के लिए मात्र एक चिनगारी चाहिये. ध्यान की जरासी भी अग्नि यदि प्रकट हो जाय तो बरसों का व अनादि अनन्तकाल का जो कुछ कर्म किया, उपार्जन किया, वह जल कर भस्म हो जायेगा.
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