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जीवन व्यवहार
जीवन की प्रामाणिकता :
अनन्त उपकारी महान आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी ने धर्मबिन्दु ग्रन्थ के द्वारा अपने अनुभव का अपूर्व चिन्तन दिया है कि किस प्रकार हमारा जीवन व्यवहार हो, दूसरों का रक्षण करना, दूसरों को सहयोग करके उनको ऊंचा उठाना, यदि हमारे जीवन में सेवा भाव हो तो इसके लिए पहले जीवन व्यवहार को शुद्ध करें फिर आत्मा की शुद्धि होगी. विचार और आचार का समन्वय, ज्ञान और क्रिया का समन्वय हो तभी मोक्ष प्राप्ति का मार्ग मिलेगा.
धर्म साधना के प्रवेश द्वार में न्याय सम्पन्न व्यक्ति चाहिये. सर्वप्रथम जीवन की प्रामाणिकता आनी चाहिये. व्यक्ति सर्व प्रथम अपनी आत्मा के लिए ईमानदार बन जाए. हर धर्म के व्यक्ति, हर सम्प्रदाय के व्यक्ति यदि अपने सम्प्रदाय के लिए, अपने धर्म ग्रन्थों के लिए ईमानदार बन जाए, हिन्दू सच्चा हिन्दू बन जाए और गीता के प्रति उसकी पूर्ण वफादारी आ जाए, कृष्ण के प्रति पूर्ण समर्पण भाव मीरा की तरह यदि आ जाए, जैन महावीर के प्रति पूर्ण प्रामाणिक वन जाए और उनके आदेश के पालन के लिए स्वयं को पूर्ण ईमानदार बना ले. जीवन के अन्दर सत्य, संयम और सदाचार को प्राप्त कर ले. मुसलमान समझ लीजिए अपनी कुरान के लिए वफादार बन जाएं, पूर्ण प्रामाणिक वन जाएं कि खुदा की नजर में दुनिया की कोई
ऐसी नहीं जो न हो. मेरे जीवन की हर रचना उसके सम्मुख उपस्थित है. जो मैं देखता हूँ, वही मेरा खुदा देख रहा है. मैं क्यों गलत करूं? मेरी गलती की सजा भी वही देगा. यदि हर व्यक्ति इस दृष्टिकोण से अपने धर्म के लिए वफादार बन जाए तो मैं आपको विल्कुल सही कहा हूँ- यह संसार स्वर्ग बन जायेगा.
श्रद्धा और विश्वास :
इंग्लैंड के अन्दर ८० साल पहले एक ऐसा दुष्काल आया कि पीने को पानी तक नहीं. कई वार विज्ञान भी प्रकृति के आगे विवश हो जाता है. विज्ञान मार सकता है, जीवन नहीं दे सकता. सभी लोग निराश हो गये उस भयंकर दुष्काल से, तब अन्तिम उपाय परमेश्वर की प्रार्थना को अपनाया. टेम्स नदी के किनारे आये और प्रार्थना करने लगे. एक निर्दोष बालक जो १० वर्ष की उम्र का था, उन दस लाख लोगों की प्रार्थना सभा मैं आया और अपने साथ रेन कोट और छाता लेकर आया. लोग उस पर हंसने लगे-तुम इस भयंकर गर्मी में छतरी लेकर आये हो और यहाँ दूर-दूर तक पानी की एक बूंद नहीं है. निर्दोष उम्र के उस लड़के ने कहा- तुम परमात्मा में अविश्वास लेकर आये हो, तुम्हारी क्या प्रार्थना सफल होगी ? मुझे अपने परमात्मा पर पूर्ण विश्वास है. मेरी प्रार्थना सुन कर उस करुणा सागर के अन्तर में करूणा जरुर जाग्रत होगी और वरसात जरूर आयेगी. मैं वापस भीगता हुआ कैसे जाऊँगा, इसलिए
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