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" जेवी तारी वाणी । तेवुं छासमां पाणी । । ”
इसी प्रकार एक हिन्दी का संवाद है :बड़ा देवर :- " कानी भाभी ! पानी दे . " भाभी :- " कुत्ते को दूँ, तुझे नहीं." छोटा देवर :- “रानी भाभी ! पानी दे . " भाभी :- " शरबत पी ले, पानी क्यों?"
चाणक्य ने लिखा है :
प्रिय वाक्य प्रदानेन
सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः ।
तस्मात्तदेव वक्तव्यम्
वचने का दरिद्रता ?
बरू खोलिय तरवार ।
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सुनत मधुर परिनाम हित
[प्रिय वाक्य वोलने से समस्त प्राणी प्रसन्न होते हैं; इसलिए प्रिय (मधुर) वाक्य ही बोलना चाहिये, बोलने में कैसी दरिद्रता ? (धन की दरिद्रता हो सकती है; किन्तु शब्दों की कैसी दरिद्रता ? ) ]
सन्त तुलसीदास का यह दोहा भी याद रखने योग्य है :
रोष न रसना खोलिये,
बोलिय वचन विचारि ।।
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जीवन दृष्टि
[ जीभ से गुस्से को प्रकट मत करो - अपशब्दों (गालियों) का प्रयोग मत करो, भले ही तलवार खोल लो. सोच विचारकर वही वचन वोलो, जो सुनने में मीठे लगे और भलाई करने वाले हों]
कागा काको धन हरे, कोयल काको देत ।
मीठो वचन सुनायके, जग अपुनो करि लेत ।।
मीठी वाणी के कारण कोयल से लोग प्यार करते है; अन्यथा काला पक्षी तो कौआ भी होता है; परन्तु कर्कश बोली के कारण कोई उसे सुनना और देखना तक पसन्द नहीं करता
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राजा जयसिंह का नया विवाह हुआ था, नवोढा के सौन्दर्य से अभिभूत होकर वे निरन्तर उसी के सान्निध्य में रहने लगे, इससे राज्य में अव्यवस्था फैल गई, प्रजाजनों की शिकायत