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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ९२ " जेवी तारी वाणी । तेवुं छासमां पाणी । । ” इसी प्रकार एक हिन्दी का संवाद है :बड़ा देवर :- " कानी भाभी ! पानी दे . " भाभी :- " कुत्ते को दूँ, तुझे नहीं." छोटा देवर :- “रानी भाभी ! पानी दे . " भाभी :- " शरबत पी ले, पानी क्यों?" चाणक्य ने लिखा है : प्रिय वाक्य प्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तवः । तस्मात्तदेव वक्तव्यम् वचने का दरिद्रता ? बरू खोलिय तरवार । www.kobatirth.org सुनत मधुर परिनाम हित [प्रिय वाक्य वोलने से समस्त प्राणी प्रसन्न होते हैं; इसलिए प्रिय (मधुर) वाक्य ही बोलना चाहिये, बोलने में कैसी दरिद्रता ? (धन की दरिद्रता हो सकती है; किन्तु शब्दों की कैसी दरिद्रता ? ) ] सन्त तुलसीदास का यह दोहा भी याद रखने योग्य है : रोष न रसना खोलिये, बोलिय वचन विचारि ।। Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जीवन दृष्टि [ जीभ से गुस्से को प्रकट मत करो - अपशब्दों (गालियों) का प्रयोग मत करो, भले ही तलवार खोल लो. सोच विचारकर वही वचन वोलो, जो सुनने में मीठे लगे और भलाई करने वाले हों] कागा काको धन हरे, कोयल काको देत । मीठो वचन सुनायके, जग अपुनो करि लेत ।। मीठी वाणी के कारण कोयल से लोग प्यार करते है; अन्यथा काला पक्षी तो कौआ भी होता है; परन्तु कर्कश बोली के कारण कोई उसे सुनना और देखना तक पसन्द नहीं करता For Private And Personal Use Only राजा जयसिंह का नया विवाह हुआ था, नवोढा के सौन्दर्य से अभिभूत होकर वे निरन्तर उसी के सान्निध्य में रहने लगे, इससे राज्य में अव्यवस्था फैल गई, प्रजाजनों की शिकायत
SR No.008716
Book TitleJivan Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1995
Total Pages134
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Education
File Size7 MB
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