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धम्म सारहीणं अर्थात् मेघकुमार का कथानक श्रणिक के दरबार में महाराजा श्रेणिक को नमस्कार करके वनपालक ने वधाई दी कि, 'राजन्! श्रमण भगवान महावीर का उद्यान में पदार्पण हुआ है !' राजा ने दरवार विसर्जित किया और वे पुत्र, रानियों एवं अन्य परिवार-जनों के साथ समवसरण में आये | सबने भगवान की देशना श्रवण की और किसी ने संयम, किसी ने देशविरति तो किसी ने समकित ग्रहण किया।
महाराज श्रेणिक परिवार के साथ समवसरण से लौटे, परन्तु उनके पुत्र मेघकुमार के कानों में तथा हृदय में भगवान की देशना का गहरा प्रभाव पड़ा।
मेघकुमार महाराजा श्रेणिक की रानी धारिणी का इकलौता पुत्र था। वह स्वभाव से शान्त, अल्प-भापी एवं मुशील था । धारिणी का साँस, प्राण अथवा जो कुछ गिनो वह सव यह पुत्र था। महाराजा ने मेघकुमार का आठ राजकुमारियों के साथ विवाह किया था। धारिणी के समान स्नेह-सिक्त माता तथा प्रतापी एवं विवेकी श्रेणिक के समान पिता, फिर मेघकुमार को क्या चिन्ता? मेघकुमार ने सुख, राज्य-वैभव एवं प्रेम के अतिरिक्त अन्य कुछ भी देखा नहीं था।
भगवान की देशना ने मेघकुमार के हृदय में मन्थन प्रारम्भ किया। उसे जीवन की सफलता में माता-पिता की शीतल छाया और वैभव तनिक भी उपयोगी प्रतीत नहीं हुए। उसे तो केवल एक ही धुन लगी कि भगवान की शरण में जाकर अपना जीवन समर्पित करके यह मानव-भव कव सफल करूँ?
(२) मेधकुमार धारिणी एवं श्रेणिक के पास आया, उनके चरण स्पर्श किये और कहने लगा, 'आपने और मैंने भगवान की वाणी का श्रवण किया है, परन्तु मुझे तो वाणी श्रवण करने के पश्चात् तनिक भी चैन नहीं पड़ रहा । मुझे व्यतीत होने वाला एक एक क्षण अमूल्य प्रतीत होता है और वह अमूल्य मानव-भव का क्षण मैं भोग, सुख अथवा प्रमाद में व्यतीत करने के लिए तैयार नहीं हूँ। यदि आप अनुमति प्रदान करें तो मैं भगवान की शरण में जाकर प्रव्रज्या अङ्गीकार करूँ!'
ये शब्द सुनते ही धारिणी मूर्छित हो गई । तनिक समय में स्वस्थ होकर कहने लगी, 'पुत्र! संयम अर्थात् क्या होता है इसका तुझे ध्यान है? घर-घर भिक्षा माँगना, लकड़ी के पात्रों में खाना, नंगे सिर और नंगे पाँव विहार करना, ब्रह्मचर्य का पालन करना, यह सब क्या तू सहन कर सकेगा?'