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(८) कच्चे सूत का बन्धन अर्थात् आर्द्रकुमार का वृत्तान्त
(१) आईक देश अर्थात् वर्तमान समय में जहाँ काबुल है वह स्थान, जहाँ आईक राजा राज्य करता था। राजा के आर्द्रकुमार नामक एक गुणवान पुत्र था ।
एक वार आईक राजा की राज्य सभा में राजगृही से राजा श्रेणिक के मन्त्री आये और आईक राजा के चरणों का स्पर्श करके श्रेणिक राजा द्वारा प्रेपित कतिपय उपहार प्रस्तुत करके कहने लगे, 'राजन्! न तो आपने हमारे राजाजी को देखा है और न आपको हमारे राजाजी ने देखा, फिर भी आपका पारस्परिक प्रेम अपूर्व है । हमारे देश की उत्तम उत्तम वस्तुएँ आपको प्रेपित करने के लिए हमारे राजाजी सदा रटन लगाते हैं और किसी भी उत्तम वस्तु का उपयोग करने से पूर्व आपका स्मरण करते हैं।'
आईक राजा के मन में श्रेणिक के इस स्नेह के लिए सम्मान उत्पन्न हुआ। उसने मंत्रियों का अत्यन्त सत्कार किया और कहा, 'श्रेणिक जैसे राजा की मित्रता को मैं अपना परम सौभाग्य मानता हूँ। मैं आपको अपने देश की ये कतिपय वस्तुएँ प्रदान करता हूँ, जिन्हें आप मेरे मित्र को प्रदान करना।'
राज्यसभा में आसीन आर्द्र कुमार ने तुरन्त मंत्रियों को पूछा, 'मंत्रिवर! आपके राजा के पुत्र का नाम क्या है?'
उन्होंने कहा, 'हमारे श्रेणिक महाराज के ज्येष्ठ पुत्र अभयकुमार हैं । वे महान् वुद्धिमान हैं। राज्य के पाँच सौ मंत्रियों में वे मुख्य मंत्री का कार्य सम्हालते हैं।'
यह सुनकर आर्द्रकुमार ने श्रेणिक के मंत्रियों से कहा - "पिताजी श्रेणिक राजा के मित्र हैं उसी प्रकार मैं अभयकुमार का मित्र बनता हूँ | मैं जो उपहार देता हूँ वे आप उन्हें मेरी ओर से दे देना।" यह कह कर उसने भी अनेक बहुमूल्य वस्तुएँ अभयकुमार को देने के लिए मंत्रियों को दी।
मंत्रियों ने आर्द्रक राजा के उपहार महाराज श्रेणिक को और आर्द्र कुमार द्वारा प्रेषित उपहार अभयकुमार को दिये।
अभयकुमार बुद्धि-निधान एवं वैराग्यमय अन्तःकरण का था। उसे विचार आया कि आर्द्रकुमार मेरा मित्र बना है तो मुझे सच्चे मित्र के रूप में उसे हितमार्ग में लगाना