SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपयोगी हो सकता है. इस प्रकार जैन आगम में धर्मकथाआंका महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ है. आगम ग्रंथों में कथाओं के प्रकार, भेद-प्रभेद आदि के विपय में सूक्ष्म एवं गहन चिंतन प्राप्त होता है. कथाओं के प्रकार के विषय में जैन धर्म में जितना चिंतन किया गया है शायद ही अन्य धर्म में प्राप्त होता है. आप ग्रंथ में सर्व प्रथम कथा के दो प्रकार विकथा एवं कथा किया गया है. ___जो कथा जीवन में विकार उत्पन्न करती है यह बिकथा है उससे साधक को दूर रहन का उपदेश दिया गया है. एसी कथाओं का चार मुख्य भेद है यथा - स्त्री कथा, देश कथा. 'भक्त कथा और राज कथा. इन कथाओं के श्रवण मे साधक के मनमें राग, द्वप, क्रांधादि कपाय एवं कामादि विकार उत्पन्न होत है इसमें जीवन उर्ध्वगामी न बनकं अधोगामी बनता है. अतः जीवको इन कथाओं से दूर रहने का उपदेश दिया है. धर्मकथा वह है जिसस जीव का आत्मविकास हो इसक, चार प्रकार बताए गए है. .. (3) आक्षेपणी कधा. (२) विक्षपणी कथा, (३) संवेदनी कथा और (४) निवेदनी कथा. (१) आक्षेपणी कथा :- जिस कथा म जीव का ज्ञान एवं चारित्र के प्रति आकर्षण पेटा हाता है उस आक्षेपणी कथा कहत है. (२) विक्षपणी कथा :- जिस कथा स जीव सन्मार्ग में स्थापित हा उसे विक्षपणी कथा कहतं (३) संवेदनी कथा :- जिस कथा य जीव को जीवन की नश्वरता, दुख्ख बहुलता, अशुचिता आदि का बांध हो और उसम वैराग्य उत्पन्न हो उसे संवेदनी कथा कही जाती है. १४) निवेदनी कथा :- जा कृत कर्मों के शुभाशुभ फल का वतलाकर संमार के प्रति उदासिनता बताती हो उस निवेदनी कथा कहते है. हम प्रकार उक्त चार भद एवं प्रत्येक कथा के प्रभदा की चर्चा प्राप्त होती है. एक अन्य विभाग में कथाआ के तीन भंद किए गए हैं यथा धमकथा. अथंकथा, काम कथा. दशवकालिक मुत्र में कथाक चार भेद पाए जाते है. धर्म कथा, अर्थ कथा, काम कथा एवं संकीर्ण कथा. जिम कथा में मानव की आर्थिक समस्याओं का समाधान किया गया है उस अर्थ कथा कहतं है. जियम मानवी के केवल रूप सौंदर्य का ही नहीं अपितु! जातीय समस्याओं का विश्लपण हा उन काम कथा कहतं है. जिसमें जीवन का उन्नत बनाने वाले शील, मंयम, तप. धर्म आदि का कथा द्वारा वर्णन किया गया हो उसे धर्म कथा कहतं है. जिमम धर्म अयं एवं काम तीनों का वर्णन पाया जाता हा उस सकोग कथा या मिथकथा, कही जाती है. आचार्य हरिभद्रसूरिन कथाओं के उक्त विभागों का यणन ममरादित्य कथा में किया है, धर्मकथा का छाड़कर अन्य डा प्रकारको कथाए पंमार की वृद्धि करन वाला होन क कारण त्याज्य मानी गई है. धर्म कथा कम निर्जरा का कारण हान म उपादय मानी गई है. उद्योतनमूरि की कुवलयमाला कथा में कथाओं का एक अन्य विभाजन प्राप्त होता है उनक मतानुसार कथा के पांच प्रकार है. यथा (१) सकल कथा - जिम कथा के अन्त में सभी प्रकार के अभीप्ट की प्राप्ति होती हो उस मकल कथा कही जाती है.
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy