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सुनन्दा एवं रूपसेन में आँसू भरकर पश्चाताप करता हुआ भद्र बना।
साध्वीजी के गुण-गान करते लोगों के समूह ने साध्वी को घेर लिया | गाँव के राजा भी वहाँ आये। हाथी सीधा गाँव की हस्तिशाला में चला गया ।
साध्वीजी ने राजा को हाथी के सात भवों का सम्बन्ध बताया और कहा कि 'राजन! यह हाथी भव्य है, यह छट्ठ के पारणे छट्ठ करेगा और देव-गति प्राप्त करके अपना कल्याण करेगा।'
राजा ने हाथी को आराधना करवाई और उसने तप करके देवगति प्राप्त की। साध्वी सुनन्दा को लोगों को 'केवल मन से किये गये पाप से-अनर्थदण्ड से जीव कैसे कैसे कष्ट प्राप्त करता है.' - यह समझाते हुए केवलज्ञान प्राप्त हुआ और वे निर्वाणपद को प्राप्त हुई।
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हरिसीमा
सुनंदा साध्वी के वचन सुनकर हाथी प्रतिबोधित हुआ एवं 'मेरा उदार करो
यूं कहता हुआ पश्चाताप करता हुआ भद्र बना.