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श्री पार्श्वनाथ भगवान का चरित्र
राजा ने अन्तःपुर में आकर दिव्य पुत्र को देखा तो बे हर्ष-विभोर हो गये। राजदरवार लगा कर सबको धूमधाम से जन्मोत्सव मनाने का आदेश दिया । भगवान की माता ने घोर श्याम रात्रि में स्वप्न में साँप देखा था, जिसके कारण भावान का नाम पार्श्वकुमार रखा गया । तीन ज्ञान से युक्त भगवान ने वाल्यकाल व्यतीत करके युवावस्था में पदार्पण किया। एक बार पार्श्वकुमार ने समस्त नगर-निवासियों को नगर के बाहर जाते देख कर अपने मित्रों को उसका कारण पूछा । मित्रों ने बताया कि नगर के बाहर एक तापस पंचाग्नि तप कर रहा है । लोग उसे देखने के लिए जा रहे हैं । तब करुणासागर प्रभु लोगों को समझाने के लिए उस स्थान पर गये। वहाँ उन्होंने एक तापस को अग्नि में लकड़ियाँ डालते देखा।
पार्श्वकुमार ने तापस को कहा, 'धर्म के नाम पर तुम पाप क्यों कर रहे हो? दया धर्म का मूल है । तुम तो निरन्तर छ: काय की हिंसा करते हो।' पार्धकुमार की बात सुनकर क्रोधित होकर कमठ बोला, - 'राजकुमार! तुम गजोंअश्चों को खिलाने वाले धर्म-कर्म में क्या समझोगे?'
तव पार्थकुमार ने कहा, 'मैं सत्य कह रहा हूँ।' यह कह कर उन्होंने अपने एक सेवक के द्वारा एक जलती हुई लकडी अग्नि में से बाहर निकलवायी तब उसे चीरने पर उसमें से एक अधजला नाग निकला। उन्होंने नाग को नवकार मंत्र श्रवण कराया । नवकार मंत्र का श्रवण करते-करते नाग का देहान्त हो गया | नवकार मंत्र श्रवण करने के कारण नाग धरणेन्द्र देव बना। कमठ ने अपनी प्रतिष्ठा खो दी और वह लोगों में उपहास का पात्र वना। अपनी प्रतिष्ठा घटती देख कर वह वहाँ से भाग गया और अकाम निर्जरा रूप तप करने से वह मेघमाली दंव वना।
एक वार भगवान श्री पार्श्वनाथ महारानी प्रभावती के साथ उद्यान में बैठे थे । उस समय उन्होंने दीवार पर चित्रित भगवान श्री नेमिनाथ के चित्र देखे । उनमें राजीमती के त्याग का प्रसंग देखा, तब उन तीन ज्ञान के स्वामी को संवेग प्राप्त हुआ | इधर लोकान्तिक देवों ने आकर भगवान को तीर्थ स्थापित करने के लिए विनती की। पार्धकुमार, माता, पिता और रानी की आज्ञा लेकर वार्षिक दान देने लगे। उन्होंने एक वर्ष तक ३८८८०००००० स्वर्णमुद्राओं का दान दिया और विशाला नामक शिविका में बैठ कर आश्रम के उद्यान में ३०० राजपुत्रों के साथ दीक्षा अङ्गीकार की। विहार करते हुए वे कादम्बरी नामक वन में पधारें, जहाँ सह नामक पर्वत के पास वे कायोत्सर्ग ध्यान में रहे। वहाँ महीधर नामक हाथी आया। भगवान को देख कर वह असमंजस में पड़ गया और वहीं उसे जाति-स्मरण ज्ञान हुआ। उसने अपना पूर्व भव देखा और सरोवर में से कमल लाकर उसने भगवान की पुष्प-पूजा की । उस