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संयोग-त्याग अर्थात् नमि राजर्षि का वृत्तान्त
१५१ की ध्वनि नहीं सुनने स बोध प्राप्त किये हुए तथा इन्द्र द्वारा परीक्षा क्रिय हुए नमिराजा न उत्कट वैराग्य के कारण संयम ग्रहण करके आत्म-कल्याण किया। __ प्रव्रज्या अगीकार करने क पश्चात नमिराज कर्मों का क्षय करके कवली बने और अन्त में सिद्धि गति प्राप्त करके सिद्ध बुद्ध होकर कृतकृत्य हुए।
(ऋषिमण्डलवृत्ति-उत्तराध्ययन से)
चारित्र चूडामणि श्रमणश्रेष्ठ मुनिश्री रविसागरजी म. की पुण्य शताब्दि वेला में, परम पूज्य प्रशमरसनिमग्न आचार्य देव श्रीमत् कैलाससागरसूरीधरजी म. सा. द्वारा संग्रहित श्री जैन कथासागर (सचित्र) भाग - १ समाप्त.
शिवमस्तु सर्व जगतः
* मानव-जन्म आमोद-प्रमोद के लिए नहीं मिला, खाने-पीने के लिए नहीं मिला, आत्मा का कल्याण करने के लिए मिला है । मनुष्य को उदर-पूर्ति के लिए नहीं, आत्मज्ञान के लिए अध्ययन करना चाहिये। * आप ईविश दूसरों को गिराने के लिए, उनकी अवनति के लिए, उन्हें सताने अथवा सन्तप्त करने के लिए कुछ न करें, क्योंकि अगले व्यक्ति का जीवन उसके कर्मों के अनुसार चल रहा होता है । जो होना होगा वही होगा। आप व्यर्थ क्यों पाप में पड़ते हैं?