________________
संयोग - त्याग अर्थात् नमि राजर्षि का वृत्तान्त
(२२)
संयोग-त्याग अर्थात् नमि राजर्षि का वृत्तान्त
१४५
(१)
मिथिला नरेश पद्मरथ के कोई पुत्र न था । इस कारण राजा एवं रानी पद्ममाला अत्यन्त खिन्न रहते थे, परन्तु प्रकृति के नियमों के आगे मनुष्य का वश थोड़े ही चलता है ? एक बार पद्मरथ राजा वन में जा पहुँचे जहाँ उन्होंने एक वृक्ष के नीच किल्लोल करते एक नवजात शिशु को देखा। राजा ने उसे लाकर अपनी रानी पद्ममाला को सौंप दिया ।
राजा ने मिथिला में पुत्र का जन्म महोत्सव मनाया। लोगों को सन्देह तो हुआ परन्तु वे उसकी अधिक गहराई में न उतर कर राजा के साथ जन्म महोत्सव में सम्मिलित हुए । इस पुत्र के घर में आने के पश्चात् राजा के प्रताप में वृद्धि होने लगी और आसपास के राजा एक के पश्चात् एक आकर उसके अधीन होने लगे । राजा को यह सब प्रताप पुत्र के आगमन के कारण आया हुआ प्रतीत हुआ और इस कारण उसने उसका नाम नमराज रखा ।
मिराज का धायमाता के द्वारा पालन-पोषण हुआ । बाल्यकाल से किशोरावस्था और तत्पश्चात् वह युवावस्था को प्राप्त हुआ । नमिराज ने देखते ही देखते सैंकड़ों रूपवती नवयुवतियों के साथ विवाह किया ।
मिराज के प्रति प्रजा का प्रेम एवं आदर- मान देखकर राजा पद्मरथ कृतकृत्य हुआ और उसने वैराग्य-मार्ग की ओर अपना मन मोड़ा । तत्पश्चात् पद्मरथ ने सुविहित साधु के पास संयम अङ्गीकार किया और उत्तम प्रकार से उसका पालन करके मुक्ति प्राप्त की !
(२)
मिराज मिथिला का नरेश बना । जैसे उसने देखते ही देखते राज्य का बहुत विस्तार किया वैसे ही लोगों के हृदय में प्रेम का भी विस्तार किया ।
नमिराज के पास हस्तिदल, अञ्चदल और प्यादों का दल था । हस्तिदल में ऐरावत हाथी के समान एक सुन्दर गजराज था । स्वर्ण की जंजीरें सुन्दर आवास एवं राजा के वहाँ प्राप्त सुस्वादु भोजन करते हुए भी हस्तिराज का विन्ध्याचल की स्वतन्त्रता का स्मरण हुआ । उसने स्वर्ण-शृंखलाएँ तोड़ डाली, हस्तिशाला तोड़ दी और मिथिला को तहस-नहस करके भाग छूटा। कोई भी उसे पकड़ नहीं सका । वह जंगल, गाँव, नगर