________________
१२७
दृढ़ संकल्प अर्थात् महात्मा दृढ़प्रहारी घर आकर कौए की तरह खीर खा रहे हैं । पिताजी! हमें खीर दिलवाओ, क्योंकि वे हमारे लिये तनिक भी खीर नहीं रहने देंगे।'
ब्राह्मण गाँव की ओर भागा और एक मोटी दरवाजे की साख लेकर उसने खीर खाते हुए लुटेरों के सिर पर प्रहार करने प्रारम्भ किये | एक धराशायी हुआ, दूसरे की टाँग टूट गई तो तीरारा रक्त रंजित हो गया, लहू-लुहान हो गया । यह बात उसी गाँव में अन्य स्थान पर लूट करते दृढ़प्रहारी को ज्ञात हुई। वह उस ब्राह्मण के घर आया
और एक ही प्रहार में साख लेकर अपना सामना करने वाले ब्राह्मण के दो टुकड़े कर दिये । उस ब्राह्मण के घर अनेक वर्षों से एक गाय थी। वह अपने स्वामी को कटता हुआ देख नहीं सकी । अतः बल लगा कर उसने खूटा उखाड़ दिया और वह दृढ़प्रहारी के सामने सींग भिड़ाती हुई दौड़ी। दृढ़प्रहारी ने तुरन्त तलवार से उस पर आक्रमण किया और देवशर्मा की तरह उसके भी दो टुकड़े कर दिये । ब्राह्मणी ने देखा कि इतनी सन्तान हैं, कमाने वाला कोई नहीं है, मैं जीकर क्या करूँगी? वह रोती-चीखती दृढ़प्रहारी के पास आकर बोली, 'चाण्डाल! मार-मार, तू सवको मार डाल ।' दृढ़प्रहारी क्रोध से तमतमा रहा था । उसने तुरन्त अपनी तलवार उसके पेट में भोंक दी। ब्राह्मणी गिर गई और साथ ही उसके पेट का गर्भ भी नीचे गिर कर तड़पने लगा | ब्राह्मण के वच्चे 'ओ माता! ओ पिताजी! वचाओ, बचाओ' करते हुए चिल्लाने लगे, परन्तु मरने के लिए कौन आगे आता?
स्वामी की हत्या को न देख सकी अतः गायने बल लगाकर खूटा उखाड दिया
एवं दृढ प्रहारी के सामने सींग भिडाती हुई दौडी.