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________________ ११८ सचित्र जैन कथासागर भाग - १ उसे एक वाघिन मिली । वाधिन ने मानव-वाधिन भद्रा को वहीं पर चीर डाली और उसे छठ्ठी नरक में भेज दिया। निर्धनता एवं धन की लालसा मनुष्य को पशु से भी बदतर स्थिति में पहुँचा देती है; इस विचार को साकार कर, माता पुत्र का विक्रय करे और उसका वध करे ऐसे मलिन वृत्तान्त को अपने साथ रख कर अनेक रौरव भवों में भद्रा परिभ्रमण करती रही। माता, पिता, स्वजन कोई किसी के नहीं हैं परन्तु अन्त में अमर धाम को पहुँचाने वाले पंच परमेष्ठी का स्मरण ही कल्याणकारी है - ऐसे आदर्श को जगत् के समक्ष रख कर अमरकुमार 'नवकारमंत्र' के स्मरण से अमर देव बने और आज भी - जो जो मंत्र नवकारथी अमर कुमार शुभ ध्यान रे, सुरपदवी लही मोटकी, धरम तणे परसादे रे। आदि स्वाध्याय से उनके गुणों का स्मरण करते हैं। (सज्झायमाला में से)
SR No.008714
Book TitleJain Katha Sagar Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages164
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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