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VIII. होने से सामान्य जन को यह ग्रंथ अनुपादेय रहा इसलिए उनके मन में विचार उद्भावित हुआ कि प्रस्तुत ग्रंथ की कथाओं का गुजराती अनुवाद किया जाय तो सबको लाभ होगा. यह विचार उन्होंने कार्यान्वित किया और गुजराती अनुवाद का कार्य पंडित पफतलाल भाई गांधी का पौंपा गया. अनुवाद होता गया और प्रकाशित भी हो गया. अनुवाद का नाम जैन कथामागर रखा गया. इसमें १०१ कथाऔं का समावेश किया गया है. जो श्राद्धविधि. श्राद्धप्रतिक्रमणसूत्र. श्राद्धगुण विवरण, शीलोपदेशमाला, उपदंशमाला, धर्मकल्पद्रुम, त्रिपप्ठिशलाकापुरुष प्रस्तावशतक, कथारत्नाकर, परिशिष्ट पर्व आदि ग्रंथों से ली गई है ___इसमें लघुकथा एवं बृहद् कथा का भी समावेश किया गया है. इन कथाओं का मुख्य उद्देश जीवनमें दुर्गणों का नाश करके सद्गुणों को बढ़वा देना है. त्याग, विनय, विबक, बैराग्य. अहिंसा आदि का उदय हो और जीव धर्माभिमुख एवं आत्माभिमुख हो यही मुख्य भावना इन सभी कथाओं के पीछे है. इसमें यशोधर चरित्र, चंदराजा चरित्र, धर्मरुचि शेठ, जिण्हा शेठ, मानदवसृरि रत्नाकरसूरि, भरतचक्रवर्ति, बाहुबलि, बंकचूल, हीलिका आदि की कधाएँ जीवन परिवर्तन के लिए महत्त्वपूर्ण संदेश दे रही है. इस तरह यहाँ प्रकाशित होने वाली सभी कथाएँ जीवन के विभिन्न पक्ष को स्पर्श करती है. जिस का अध्ययन जीव का आत्मिक वल प्रदान करती है. अतः अवश्य पठनीय एवं मननीय ग्रंथ है.
१९५३ में जैनकथा सागर का तृतीय भाग प्रकाशित हुआ तव पं. श्री शिवानन्दविजयी गणि न प्राक्कथन में लिखा है कि "जैन कथासागर गुजरात में तो बहुत ही पढ़ा जाना है एवं समाज भी उसका पर्याप्त लाभ उठा रहा है. तथापि जैन कथासागर के प्रेरक एवं लेखकको मधन्यवाद नम्र निवेदन है कि आज हिन्दी भापा राष्ट्र भापा एवं सर्वमान्य भापा हान में इसका हिन्दी भाषा में अनुवाद प्रगट हो तो मारवाड़, मेवाड़, मध्यभारत आदि में रहनं बाल जैन भाईओं का वहुत ही लाभ होगा. जो इन ग्रंथों से लाभान्वित हांग उसकी धर्मभावना दृढ होगी और जैन शासन की प्रभावना हांगी.' पचास साल पूर्व हिन्दी अनुवादकी भावना की गई थी आज उक्त भावना परिपूर्ण हो रही है. यह अतीव आनंद एवं हर्ष की बात है.
शासन प्रभावक आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के आशीवाद मं एवं गणिवयं श्री अरुणोदयसागरजी म. सा. की सत्प्रेरणा सं इस ग्रंथ का सरल एवं भाववाही अनुवाद किया गया है. सायाजी शुभ्रांजनाश्रीजी म. (गणिवर्य श्री अरुणोदयसागरजी म. की मांसारीक छोटी बहन) ने इस ग्रंथ का सुंदर संपादन कर कथाओं की प्रस्तुती को सरल एवं रोचक बनाया हैं, जो आज के युग में बहुत ही उपादय सिद्ध होगा. पूज्य गणिवर्य श्री के अंतर में भी यही भावना घुमरा रही थी कि प्रस्तुत ग्रंथ की कथाएँ जीवन में आमूल परिवर्तन लाने वाली अद्भुत धर्म कथाएँ है जिसका लाभ गुजरात वाह्य प्रदेश के हिन्दी भाषी श्रावक एवं गृहस्थों को मिले तो कल्याण हा सकता है अतः इस ग्रंथ का अनुवाद करवाकर प्रकाशित करवाया है. जिसके लिए पूज्य गणिवर्य श्री का बहुत-बहुत धन्यवाद . कथासागर के शेष भाग एवं अन्य एस अनंक ग्रंथ है जिसका हिन्दी अनुवाद आवश्यक है. पूज्य गणिवर्य श्री भविष्य में भी प्रस्तुत कार्य की परंपरा चालू रखें यही शुभ भावना.
अन्त में श्री अरुणोदय फाउन्डेशन एवं उसके अभ्यासीओं को भी धन्यवाद. जा इस प्रकार के महत्त्वपूर्ण कार्य में संपूर्ण सहयोग प्रादन कर रहे हैं.