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बोलने की अपेक्षा नहीं बोलना श्रेष्ठ है अर्थात् विजय सेठ की कथा
(३२) बोलने की अपेक्षा नहीं बोलना श्रेष्ठ है
अर्थात् विजय सेठ की की कथा
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विजयवर्धन जयवर्धन नगर के सेठ विशाल के एक विजय नामक पुत्र था, जो अत्यन्त विनयी, गम्भीर एवं गुणवान था । वयस्क होने पर वसन्तपुर के सेठ सागर की पुत्री 'श्रीमती' के साथ विजय का विवाह हुआ । श्रीमती के नाम के अनुरूप ही उसका सौन्दर्य था, परन्तु पति के अतिशय वियोग के कारण वह तनिक चरित्र - भ्रष्ट हो गई थी ।
एक बार विजय अपनी पत्नी को लेने के लिए बसन्तपुर आया । पिता के आग्रह से श्रीमती अपने पति विजय के साथ चली परन्तु उसका मन अपने मैके में रहने वाले उसके प्रेमी एक दास में था ।
तनिक दूर चलने पर मार्ग में एक कुँआ आया। विजय जब उस कुँए में जल निकाल रहा था तब पीछे से उसकी पत्नी श्रीमती ने उसे कुँए में ढकेल दिया । कुँए में गिरते ही विजय ने उसमें उगे एक वृक्ष की शाखा पकड़ ली ।
असदाचारी पत्नि ने अपने पति को कुए में गिरा कर मारने की कांशिश की. मगर मारने वाले से भी तारने वाले के हाथ...