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________________ आरसा भवन में केवलज्ञान अर्थात् चक्रवर्ती भरत ३९ आत्मा जाने पर यह देह और यह समृद्धि सव पराई है। भरतेश्वर आत्म- रमण की विचारधारा में गहरे - गहरे डूबते रहे और उन्हें आरीसाभुवन में ही केवलज्ञान प्राप्त हो गया। इन्द्र का आसन कम्पित हुआ । उसने उपयोग किया तो ज्ञात हुआ कि भरतेश्वर ने केवलज्ञान प्राप्त किया है। इन्द्र ने मुनिवेष प्रदान किया । भरतेश्वर ने पंच मुष्टि लोच किया और मुनि-वेष पहनकर भरतकेवली दस हजार मुनियों के साथ धरातल पर विचरने लगे । अयोध्या के राज्य-सिंहासन पर आदित्ययशा का अभिषेक हुआ । दीक्षा के पश्चात् एक लाख पूर्व तक भरतेश्वर जगत् में विचरते रहे और अनेक प्राणियों का उद्धार करके अपने नाम से भरतक्षेत्र को प्रसिद्ध करने वाले वे अनशन करके निर्वाण-पद को प्राप्त हुए । (लघुत्रिषष्टिशलाका चरित्र से)
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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