________________
"...
-
-
-
.
-
-
-
-
.
.
जिनाय नमः प्रस्तावना
डॉ. जितेन्द्रकुमार बी. शाह धर्म का मुख्य उद्देश्य जीव को शिव बनाना है. मानव का महामानव और पामर का परमात्मा बनाने की कला ही धर्म है. अनादि काल में जीव गमार में परिभ्रमणा करता आ
विध कममल का अजन करता है. इस परिभ्रमण के काल म कभी किया ग.मागदाता म का सयोग प्राप्त हाल ही जीव के विकाग का प्रारंभ हो जाता है. अनक जन्मा । अजित कमां का दूर करने की प्रक्रिया का प्रारंभ हो जाता है. अद्यावधि अनकानक महाप पा न अपन गुम्पा में जीवन को सफल करक आत्मा का संपूण निमल किया है. म पहापुम्पा का जीवनगाथा तो उच्च ही होती है.. मात्र माथ म अनक, जीवात्मा का परगणा भी देता है. अत कधा न कवल मनोरंजन के लिए होनी है किन्तु अनंक आत्मा आ का प्रणादाचा ना होता है महापुरुषां क जीवन चरित्र को मुनकर अनेक जीवात्मान आत्मकल्याण किया .. दुनिया श्रावक के दिन सूत्र म तो यह कामना की गई है कि महापुरुषों के परिवा के प्रयाण करत करत ही दिन पसार हा! इसके अतिरिक्त भी कथाआ का बहुत मुल्य है. यहां कथा आ का संग्रह प्रकाशित हो रहा है. यह एक आनद का विषय है.
आदेश की भूमि कथाओं के लिए प्राचानकाल प हि सुमिन्द हैं. मा के ऊपर जितनी कथा आ का निभाण हुआ है शायद ही अन्य किया धरा पर उतनी कथा का प्रायन हुआ हा! रहग्यात्मक कथाएँ. रोचक कथाएं. धोपद शान्भक कथाएं. लोककथा आदि का याद मंग्रह किया जाए तो न जान कितने ग्रंथा का निर्माण हा जाएगा? किन्तु एक दुम्य की बात यह है कि काल क प्रवाह में अनेक ग्रंथों का नाश हुआ उसमें अनकानक कथा ग्रंथा का भी नाज है। चूका है. माथ ही साथ एक सौभाग्य की बात है कि जन माहित्य म अनक कथा आ का गंरक्षण हुआ है. इसलिए पाश्चात्य पनिाप विन्टनिल्य ने कहा है कि जैन विद्वाना न यत्र तत्र विरवरी हुई लोककथाओं का अपने धार्मिक आस्थ्याना में स्थान देकर विपुल गाहित्य का अर्गक्षत रखने में सहायता प्रादन की है. अन्यथा हम उक्त माहित्य में बंचित रह जातं. म प्रकार जैन धर्म क. याहित्य में अनेक कथा साहित्य के ग्रंथ उपलब्ध हात है. य ग्रंथ अधागागधी, मागधी. शापना, महाराष्ट्रीय प्राकृत भाषाओं में उपलब्ध हात है याथ म संस्कृत, अपभ्रंश एवं स्थानीय भापा आम भी अनेक उत्तम कथा ग्रंथ प्राप्त होते है. आज तक इन कथा प्रथां की सूची नयार नहीं हुई है. और कथाओं को भी सूची तैयार नहीं हो पाई है अतः भविष्य में काई विद्वान इस तरह का सूची तैयार करंग ता साहित्य जगत की बहुत ही महती संवा मानी जाएगी! अन!
जैन साहित्य का उद्गम स्थान आगम ग्रंथ है. तीर्थंकर परमात्मा के पटा को गणधर भगवंता न आगम प्रधा में प्रधित किया है. तत्पश्चात भाग्चकार महामनिपिआ न उनकी व्याख्यटि को रचना की है. इन आगम ग्रंथा का चार अनुयांग में विभाजित किया गया है. 19 द्रव्यानुयाग. (२) गणितानुयोग, (३) वरणकरणानुयोग एवं (6) कथानयोग, इन चार अनुवाग म प्रधानता चरणकरणानुयोग की पानी गई है क्योंकि प्रस्तुत अनुपांग साध्य है अन्य तीन अनयांग साधन बम्प है! तथापि जीव की विकास की प्रार्थामक अवाधा म धर्मक्रयानुया' ही उपयोगी होता है, एवं सभी अनुयांगो प धर्मकथानुयांग ही गुलभ, गम एवं गग्ल है त ममा को