________________
१५
अडिग धैर्य के स्वामी अर्थात् गजसुकुमाल मुनि ही कम हुआ है। हम सुलसा श्राविका के छः पुत्र हैं। परम पावन नेमिनाथ भगवान का भदिलापुर में आगमन हुआ तब उनकी देशना श्रवण करके हम छ: भाइयों ने दीक्षा अङ्गीकार की है। हमारे रूप एवं समान आकृति के कारण स्थान-स्थान पर ऐसा भ्रम होता है । यह आपके यहाँ प्रथम प्रसंग नहीं है । प्रथम एवं द्वितीय वार हम छः भाइयों में से अनिकयश, अनन्तसेन, हितशत्रु और अजितसेन आये होंगे। हम देवयश एवं शत्रुसेन हैं। समान आकृति एवं समान रूप के कारण तुमको भ्रान्ति हुई है कि हम तीन बार आये हैं। हम तो आपके यहाँ प्रथम बार आये हैं।'
मुनियुगल चला गया परन्तु देवकी का चित्त तो उनकी ओर से हटा ही नहीं। मुनियों की वाणी, चाल, कान्ति और स्वयं को हुए रोमाञ्च से देवकी को अव्यक्त वेदना होने लगी। उसे वर्षों पूर्व उत्पन्न हुए छः पुत्रों का स्मरण हुआ । कंस ने उनका वध कराया था यह सुन कर हृदय दहल उठा और उसे प्रतीत हुआ कि, 'मुनि भले कहें - हम सुलसा श्राविका के पुत्र हैं, परन्तु कहीं वे मेरे पुत्र तो नहीं है?'
देवकी को रात भर नींद नहीं आई। उसे कंस द्वारा अपने पुत्रों के वध करने की विश्व-विख्यात वात के प्रति अश्रद्धा हुई। प्रातः होने पर देवकी श्री नेमिनाथ भगवान के समवसरण में गई । देशना पूर्ण होने के पश्चात् उसने भगवान को पूछा, 'प्रभु! कल मेरे घर भिक्षार्थ आये मुनियों को देख कर मेरे मन में श्री कृष्ण के समान वात्सल्या क्यों उमड़ा? प्रभु! वे किसके पुत्र हैं?' ___भगवान ने कहा, 'देवकी! ये छः पुत्र तेरे हैं । तेरे उन छःओं पुत्रों को हरिणगमेषी देव ने सुलसा को सौंपा था। सुलसा उनकी पालक-माता है और तू उनकी जननी है।'
देवकी का रोम-रोम पुलकित हो उठा। उसके स्तनों में से दूध की धारा छूटी । देवकी ने उनको बन्दन किया और रोते-रोते वह बोली - 'भगवान्! मुझे कोई दुःख नहीं है। दुःख केवल इतना ही है कि सात-सात पुत्रों की माता होते हुए भी मैं एक पुत्र को भी खिला नहीं सकी। इन छः पुत्रों का पालन-पोषण सुलसा ने किया और श्रीकृष्ण का पालन-पोषण यशोदा ने किया । मैं पुत्रवती होकर भी स्तन-पान कराये बिना रही।' _ 'देवकी! खेद मत कर | जगत् की समस्त वस्तुओं की प्राप्ति में और अप्राप्ति में पूर्व भव में किये गये कर्म कारणभूत होते हैं । तुने पूर्व भव में अपनी सौतन के सात रत्न चुराये थे। जव वह अत्यन्त रोई तब तुने उसे एक रत्न लौटाया था और छः रत्न को तुने छिपा दिये थे | तेरा वही कर्म इस भव में उदय हुआ, जिससे एक पुत्र तुझे तेरा वनकर प्राप्त हुआ और छः पुत्रों से तू वंचित रही।
देवकी कर्म-विपाक का चिन्तन करती-करती अपने निवास पर गई परन्तु उसके