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________________ सत्त्व अर्थात् महाराजा मेघरथ का दृष्टांत ___इतना सब होने पर भी दो देवियों को अपने रूप एवं चातुर्य पर गर्व था। वे मेघरथ के पास आई | उन्होंने अनेक प्रकार के नृत्य आदि किये, अनेक प्रकार के हाव-भावों के द्वारा उन्होंने अपने अंगों का संचालन किया । देवियों ने समझा कि हमारे चातुर्य से पत्थर भी पिघल जाते हैं, तो इस मानव की क्या बिसात? रातभर वे देवागनाएँ प्रयत्न करती रहीं परन्तु मेघरथ ने आँख तक नहीं खोली और न उसकी देह में तनिक भी विकार उत्पन्न हुआ। देवियाँ पराजित हो गईं और पुनः 'नमो तुभ्यं' कह कर देवलोक में चली गई और जाकर इन्द्र को कहा, “स्वामी! आपने कहा था उससे सवा गुना सत्त्व हमने मेघरथ की परीक्षा लेकर प्रत्यक्ष में जाना है। तप से शोषित मेघरथ ने एक बार सुना कि 'धनरथ भगवन् का परिसीमा में आगमन हुआ है। मेघरथ सपरिवार भगवन के पास गया । देशना श्रवण करके भाई को राज्य सौंप कर संयम ग्रहण किया और ऐसे संयम का पालन किया कि मृत्यु के पश्चात् सीधे सर्वार्थ सिद्ध अनुत्तर विमान में गये। (त्रिषखिशालाका पुरुषचरित्र से) zamachar - TARAM - %E - - - - - - देवांगनाएँ रातभर प्रयत्न करती रही लेकिन मेघरथ के मन में जरासी भी विषय वासना प्रगट करा न सकी.
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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