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________________ माता-पिता का वध अर्थात् पाँचवां एवं छठा भव १०३ दूसरी दासी ने कहा, 'जहाँ पशुओं का वध करके माँस पकाया जाता है वहाँ दुर्गन्ध नहीं होगी तो क्या होगा ?" प्रथम दासी वोली- 'तुरन्त मारे हुए पशुओं के माँस में दुर्गन्ध नहीं होती, पास खड़े ही न रह सकें वैसी दुर्गन्ध आ रही है । ' यह तो दूसरी ने कहा, 'सत्य बात है। यह पशु वध की दुर्गन्ध नहीं है परन्तु नयनावली के रोम-रोम में कुष्ठ हुआ है उसकी यह दुर्गन्ध है। उसने पूर्व उत्सव में रोहित मत्स्य का माँस हँस हँस कर खाया था । फलस्वरूप उसे भयंकर अजीर्ण हुआ और उसको कुष्ठ हुआ है । ' पहली दासी बोली- 'अजीर्ण से रोग होने की बात मत कर। इस पापिन को तो पत्थर खाने पर अजीर्ण नहीं होगा, परन्तु निर्दोष राजा को इसने विष देकर मार डाला था उसका पाप इसके इसी भव में उदय हुआ है। सखी! क्रूर पशु-पक्षी भी न करें वैसा उग्र पाप इसने अपने पति को मार कर किया है। कुष्ठ होना तो इस भव का कष्ट है, परन्तु पर-भव में तो इसे नरक भोगनी ही पड़ेगी।' दूसरी दासी ने कहा, 'सत्य बात है, उसकी ओर मत जाओ । यदि इसका मुँह देखोगे तो अपना दिन व्यर्थ जायेगा ।' (४) वे दो दासियाँ तो चली गईं परन्तु मेरी इच्छा नयनावली को देखने की हो गई । अतः मैं जहाँ नयनावली सो रही थी उस राजगृह में गया तो वह एक कोने में चुरी तरह पड़ी थी । उसे देखते ही मुझे आश्चर्य हुआ कि ओहो! यह नयनावली! अरे इसकी ऐसी दशा ! एक वार चन्द्रमा को भी लज्जित करने वाला उसका चेहरा कहाँ और आज मक्खियों से भिनभिनाता दुर्गन्ध युक्त चेहरा कहाँ ? अरे! उसके नेत्र कितने गहरे धँस गये हैं? इसके हाथ-पैर कैसे रस्सी के समान हो गये हैं? और सर्वथा शुष्क हो गये है । एक वार इसकी आवाज पर समस्त राजमहल काँप उठता था। आज तो उसके वचन को कोई दासी भी नहीं सुनती। पहले यदि भूल-चूक से उसे कोई देख लेता तो उसका मोहक रूप कई दिनों तक भूलता नहीं, जबकि आज उसे देख कर घोर कामी को भी घृणा होती है । अहाहा ! क्या संसार के भाव हैं? एक वार मोहक प्रतीत होने वाले पदार्थ दूसरे ही क्षण ऐसे घृणास्पद हो जाते हैं । मैं नयनावली के कक्ष से पुनः राजा गुणधर के महल में आया तव वह भैंसे का आहार कर रहा था । उसने रसोइये को कहा, 'मुझे यह भैंसे का माँस अच्छा नहीं लगता, अन्य कोई उत्तम माँस ला ।' रसोइये ने इधर-उधर देखा परन्तु अन्य कोई न मिलने पर उसने मुझे पकड़ लिया !
SR No.008713
Book TitleJain Katha Sagar Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKailassagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages143
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size3 MB
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