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एक अवर्णनीय आनन्द की उमि से हृदय का हर कोना व्याप्त हो गया। क्या आज जाने का समय आ गया है ? महाभिनिष्क्रमण का ... महा प्रयाण का?" क्या आज मेरे सब कर्तव्य पूर्ण हो गये ? यि प्रिय साथी ! आपके स्पर्श मात्र से वायु में मदुता और मधुरता की सुगंध सुवास भर गयी है।
और वह मुझे जाने-अनजाने सूचित कर जाती है कि आप मेरे बहुत समीप अतिमी निकट आ गये हैं। किन्तु .... सच, मेरे जाने का समय आज आ गया है !
३८. उपहार
आत्म प्राण नवकार !
आनेवाले दिन जब भी मृत्यु मेरे द्वारपर आएगी। सोचता हूँ तब मैं उसे क्या भेंट दूंगा? कैसा उपहार दूंगा? माजी मेरे प्राण सागर में जितने भी रत्न, मणि-मुक्ताफल होंगे वे सब उसके चरणों में से रख दूंगा। निगुनी
हे नवकार महान
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