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१३. न आये सो न आये
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प्राणेश्वर नवकार ! आप न आये, अतः मैं मयूरशिखा वीणा लेकर बैठ गया गीत गुजारित करने । वीणा के तारों के साथ अंगुलियाँ तन्मय हो खेलने लगीं। प्रत्यतः कोयल कण्ठ के पंचम स्वरों से वातावरण आल्हादित हो उठा। गीत के बोल मैंने वीणा की लय और तान के साथ एकरूप कर दिये...और गीत...वीणा की झंकार में समरस हो उठा ।। पधारो मेरे प्राणों के आधार प्रभ ! पधारो मेरे सिरजनहार करतार प्रभु !! पधारो है छोटा-सा मेरा धाम !!! लो लाखों प्रणाम मेरे जीवन नैया के खेवनहार ! जपता निश दिन तेरा नाम ! भूल गया सब कुछ अपने काम !! तुझ बिन नहीं चाहिए आराम !! ! अर्ज करता हूँ निष्काम ! पधारो, तब मिलेगा मुझे विराम !! बोल भले बेताल हैं और जीवन यह झंझाल है। किंतु आप प्रसन्न होते हीअवश्य मेरे आँगन में पधारोगे। तब सब मंगल होंगे काम! आशाएँ पूर्ण होंगी तमाम !! किन्तु.
हे नवकार महान
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