SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 25
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११. गीत सुधा का स्नेहरश्मि सुधावर्षी नवकार ! तमने जब गीत गंजारित करने का आदेश दिया। सच, मेरा सीना हर्ष से फलकर कुप्पा हो गया और रोम-रोम पुलकित हो उठा। मेर नयनों में आनन्दाथ के मेघ उभर आये। और क्षणार्ध के लिए तुम्हारा स्नेहाभिषिक्त मुखमंडल निनिमेष नयन देखता रहा । मेरे जीवन की कटुता, विषमता और अस्तव्यस्तता बरबस पिघलकर तुम्हारी गीत सुधा में परिणत हो गयी। मेरी साधना और आराधना पक्षी की तरह पंख फैलाकर विराट गगन में उडान भरने के लिए बताब हो उठी। और मैं जान गया कि साधना और आराधना के प्रतीक स्वरूप गीत एवं गीत के बल से तुम्हारे तक पहुँचने का दुर्दम्य साहस कर सकता हूँ। फिर भी मोहग्रस्तता और अज्ञानाधीनता के कारण तुम्हारे अत्यंत निकट ...समीप आने में कुछ संकोच-सा अनुभव करता हूँ। और केवल गीत तथा उसकी सुरीली लहरियों के माध्यम से तुम्हारा चरण स्पर्श कर लेता हूँ। प्रभु गान के तान में सब कुछ भूल जाता हूँ। और तुम्हें 'सखा' 'मित्र' और 'प्रियतम' मान कर सदा मौन आमंत्रण देता रहता हूँ। हे नवकार महान For Private And Personal Use Only
SR No.008712
Book TitleHe Navkar Mahan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherPadmasagarsuriji
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy