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और मैं यहाँ खुरदरी, गर्दभरी जमीन पर आसन जमाये तुम्हारे गीत गुंजारित करने में मग्न था। मेरे गीत की अस्पष्ट लहरियाँ तुम्हारे कानों से टकरायीं और तुम अपने सिंहासन से जमीं पर नीचे उतर आये। आकर खड़े हो गये मन-मंदिर के सोपान पर । अरे, तुम्हारे दरबार में अगणित गुणी गायक हैं। लेकिन मेरी दर्दभरी टीसों ने तुम्हारी सुप्त प्रेम की धारा को बरबस प्रवाहित जो कर लिया। विश्व के विविध गीत स्वरों के बीच गुजारित एक अकेले मेरे करुण स्वर ने तुम्हारे तन मन को स्पर्श किया है। हे प्रभो, तुम वरदान देने हेतु मुझ अकिंचन को गले लगा कर कृतकृत्य करने के लिए उँचे सिंहासन से उतरकर नंगे पाँव नीचे आये। मेरी हृदय की दहलीज पर शांतप्रशांत आकर खड़े रहे। परन्तु...?
हे नवकार महान
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