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८. अतिथि प्रिय अतिथि ! माननीय अतिथि !!
ओ नवकार !!! तो अब आप मेरे प्रांगण में अतिथि बनकर आये हो। ठीक ही कहा है ‘अतिथिदेवो भव' क्या ही अच्छा मौका है। का मैं अपना तन मन स्वच्छ और सुन्दर रसूंगा। सत्यम् शिवम् की दीप-ज्योति प्रज्वलित करूँगा। विचारों पर वासना की धूल नहीं जमने दूंगा। तुम मेरे आराध्य और श्रद्धेय अतिथि जो ठहरे। सच, आपके आगमन से पाप पलायन कर गय । दुःख और दर्द का जाल छिन्न-भिन्न हो गया। अब मेरे हर कार्य में तुम्हारी प्रेरणा की लौजगमगाएगी और मेरा जीवन अनायास ही पावन हो जाएगा।
९. सिंहासन
विश्वपति नवकार! तुम वहाँ अपने सर्वोच्च स्थान सिंहासन पर आरूढ थे।
हैं नवकार महान
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