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* श्री 'नवकार' निष्ठ आत्माएँ जहाँ एकत्र होती हैं, वहाँ मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ भाव के झरने बहने लगते हैं। * मत्य समय जैसे विचार होते हैं वैसे ही दूसरे जनम में शरीर की प्राप्ति होती है। इसलिये सदा सर्वदा 'नवकार' का ही विचार करना चाहिए। * जिसने स्वय को नवकार के प्रति समर्पित कर दिया है, उसके लिये समर्पण की मात्रा ज्यादा से ज्यादा बढाने के सिवाय दूसरा कोई कर्तव्य नहीं रहता। * हमें केवल 'नवकार' की करुणा का विश्वास रखना सीखना चाहिए और सर्व संयोगों में उसकी सहायता के लिए गुहार करनी चाहिए । इस प्रकार हमें निःसंदेह
उसकी कृपा का सुपरिणाम मिलेगा। * जिस प्रकार नदियाँ समुद्र की ओर बहती हैं, उसी प्रकार अपने सभी विचार और भावनाएँ 'नवकार' की ओर बहनी चाहिए। * आपने यदि 'नवकार' को पहचान लिया है तो यही एक मित्र पर्याप्त है और यदि नहीं पहचाना तो दूसरे सब मित्र बेकार हैं ! * 'नवकार' के प्रति अटूट श्रद्धा रखकर
जो काम करने में आता है, वह सदा मंगलमय बन जाता है। हम
हे नवकार महात
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