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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir * श्री 'नवकार' निष्ठ आत्माएँ जहाँ एकत्र होती हैं, वहाँ मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ भाव के झरने बहने लगते हैं। * मत्य समय जैसे विचार होते हैं वैसे ही दूसरे जनम में शरीर की प्राप्ति होती है। इसलिये सदा सर्वदा 'नवकार' का ही विचार करना चाहिए। * जिसने स्वय को नवकार के प्रति समर्पित कर दिया है, उसके लिये समर्पण की मात्रा ज्यादा से ज्यादा बढाने के सिवाय दूसरा कोई कर्तव्य नहीं रहता। * हमें केवल 'नवकार' की करुणा का विश्वास रखना सीखना चाहिए और सर्व संयोगों में उसकी सहायता के लिए गुहार करनी चाहिए । इस प्रकार हमें निःसंदेह उसकी कृपा का सुपरिणाम मिलेगा। * जिस प्रकार नदियाँ समुद्र की ओर बहती हैं, उसी प्रकार अपने सभी विचार और भावनाएँ 'नवकार' की ओर बहनी चाहिए। * आपने यदि 'नवकार' को पहचान लिया है तो यही एक मित्र पर्याप्त है और यदि नहीं पहचाना तो दूसरे सब मित्र बेकार हैं ! * 'नवकार' के प्रति अटूट श्रद्धा रखकर जो काम करने में आता है, वह सदा मंगलमय बन जाता है। हम हे नवकार महात For Private And Personal Use Only
SR No.008712
Book TitleHe Navkar Mahan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherPadmasagarsuriji
Publication Year
Total Pages126
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size9 MB
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