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-गुरुवाणी:
है. मैंने अंदाज लगाया कि वह आधा पागल है और बाईस का है. आप तो पूरे पागल हैं इसलिए चौवालीस के होंगे.
ऐसे प्रश्नों से कभी प्यास बुझने वाली नहीं. प्रश्न तो अन्दर से उत्पन्न होना चाहिए. जिज्ञासा की मनोवृत्ति होनी चाहिए तब उसका समाधान मिलता है. प्यास ले कर ही आपको आना है. प्रश्न को लेकर के आना है, उपस्थित करना है. समस्याओं का समाधान प्राप्त करना है. यह नहीं कि आप प्रश्न न करें, जरूर करें गहराई में जाकर विचारपूर्वक आपका प्रश्न हो. प्रश्न यदि सुन्दर होगा, विवेकपूर्ण होगा, उसका समाधान करना बड़ा सरल हो जाएगा.
मैं जो आपसे कह रहा था कि लक्ष्य को ले कर के चलना है. आपके जीवन का लक्ष्य क्या है? अपने लक्ष्य तक जाना है. प्रयास किया? चलने के लिए कोशिश की? प्रश्न करते रहे. मोक्ष कहां स्वर्ग कहां, परमात्मा कहां? एक कदम भी हम आगे नहीं बढ़ पाए. कहां तक पूछेगे? जीवन पूरा हो जाएगा पूछने में. कब आगे बढ़ोगे? आपको नहीं मालूम कि मैं क्या कर रहा हूं? कर्त्तव्य से विमुख होकर आप चलेंगे कैसे? ____ मैं आपको सही कहता हूं, पूछना बन्द कीजिए, चलना शुरू कर दीजिए. कैसे चलना है वह मैं बता रहा हूं. परमात्मा ने जिधर आदेश दिया, जहां जाने का रास्ता बतलाया, उसी रास्ते से चलना है. दुराचार के मार्ग पर नहीं जाना है, दुर्गति की ओर नहीं जाना है. जीवन को बर्बाद या नष्ट नहीं करना है. जीवन में आत्मा के गुणों का सृजन करना है. मैं सदगति का अधिकारी बनूं. मैं सद्कार्य करने वाला बनूं और जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर के ही मैं जाऊं. आज तक जो भी मैंने देखा .. जो भी आए प्रश्न करते रहे. पूछते रहे पर चलने वाले मुझे आज तक नहीं मिले.
1961 में जैसलमेर जा रहा था. लम्बी यात्रा थी - सौ-दो-सौ आदमी साथ थे. एक मुकाम ऐसा आया जहां रात्रि विश्राम करना पड़ा. वहां का एक ग्रामीण व्यक्ति, खेती करने वाला, रात्रि में साढ़े आठ या नौ बजे कैम्प में आया और कहा कि महाराज एक प्रार्थना है विश्राम करना चाहता हूं - अपरिचित व्यक्ति था. एकदम एकान्त जगह थी, पास में कोई गांव भी नहीं. उस जगह डाकुओं का उपद्रव भी था. ___ मैंने स्वाभाविक रूप से पूछा कि भाई तुम कहां से आए? कैसे आए? मैं तो तुम्हें जानता नहीं. उसने कहा कि महाराज मैं इस पास के गांव का आदमी हूं और किसी कारण बस चूक गया, रात्रि में बस सर्विस बन्द है. अब मैं वापिस अगर गांव में जाता हूं तो दो कोस मुझे गांव में जाना. वापिस मुझे चलकर के आना, सुबह दस बजे मुझे बस मिलेगी, तो मैने सोचा कि रात्रि में यदि सोने को यहां मिल जाए तो सुबह पांच बजे पैदल निकल जाऊं और आठ बजे गांव पहुंच जाऊं. वह जिस गांव में जाने वाला था संयोग से उसी गांव में हमारा मुकाम होने वाला था. रास्ता बड़ा घूम कर के जाता था. मैंने उससे पूछा
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