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-गुरुवाणी:
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ही जाएगा. यह तो कर्म को मारने का उपाय बतलाया गया, यह तो एक सामान्य उपाय है. अभी तो पर्युषण आ रहा है. वह तो आठ दिन लड़ने का है, ऐसे प्रबल शत्रु से मुकाबला करना है जिसने अनादि काल तक हमें गुलाम बनाकर रखा, संसार की सैन्ट्रल जेल में हमको लाकर रखा. कर्म राजा का कैदी बना करके रखा.
हमारे जीवन पर उसका कैसा अधिकार कभी उसका पश्चाताप, उपाय, कभी विचार आया कि गुलामी में कहां तक रहूंगा. जरा आप विचार करिये. इस संसार का जितना भी आनंद है, क्षण में नाश हो जाएगा. खाते-पीते मौज करते यदि डाक्टर ने इतना ही कह दिया-आप को कैंसर है. उसका परिणाम सारा आनंद चला जाएगा. एक क्षण के अन्दर. जीवन में पसीना उतार कर जो पैदा किया कोई चीज. परमात्मा महावीर की भाषा में कहा जाए.
"खणमित्त सुक्खा बहुकाल दुःखा" वह क्षण मात्र का आनंद, वर्तमान को प्राप्ति में संतोष, वह उसका परिणाम, भविष्य में आपके लिए सजा उपस्थित होगी. भविष्य में दुख और दर्द का कारण बनेगा.
वही जवान व्यक्ति, मैं बम्बई चौपाटी में था. वह जवान व्यक्ति कभी मंदिर नहीं गया, धर्मस्थान नहीं गया, उस जवानावस्था के अन्दर अमेरिका गया, बहत बड़ा जौहरी था. वहां जाने के बाद उसको टैम्प्रेचर हुआ. बुखार उतर नहीं रहा था. उसने निदान करवाया और कैंसर मिला.
इकलौता लडका, सम्पन्न परिवार. मेरा चतुर्मास चौपाटी में ही था, मेरे बिल्कुल पास वाली बिल्डिग में उसके रहने का था. लाल गुलाब के फूल जैसा उसका चेहरा, जवान अवस्था चौबीस, पचीस वर्ष की. डेढ वर्ष शादी को हए, एकमात्र उसकी छोटी बालिका और कोई नहीं माता-पिता पुत्र के लिए सब कुछ करने को तैयार
मेरे पास आए, जीवन में कभी नहीं आया, और ऐसी तबीयत है. उस वक्त बिना बुलाए पास आए.
कहा-महाराज इकलौता लडका है और ऐसी तबीयत है. मैं लेकर आया हूं.
मैनें कहा- मौंत से तो मैं नही बचा सकता पर मौत का सुधार जरूर कर सकता हूं. बचाना मेरे हाथ में नही है. सुधारने के लिए मेरा प्रयास है. इसकी मृत्यु इसके लिए वरदान बने, महोत्सव बने. मैंने कहा-वैसे कोई आशा तो नहीं है. मैं रोज उस बालक को बलाता, आधा घण्टा समझाता, वहां तक चलने फिरने की ताकत थी. चौमासे में एक दिन भी उसने परमात्मा की पूजा नहीं छोड़ी. घण्टा, दो घण्टा परमात्मा की भक्ति में रहता. प्रतिक्रमण कर के अष्ठम का मौका आया. तीन दिन तेला किया. चौविहार किया.
मैने उसे अपनी माला दी और कहा पार्श्वनाथ प्रभु का जाप करना, जीवन के अंतिम समय वही समाधि देगा. पार्श्वनाथ प्रभ के नाम स्मरण में वह ताकत है, वह मौत को सुधारती
गुना
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