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-गुरुवाणी
दो दिन बाद फिर वही हालत, रात को मीटिंग हई. मफतलाल ने कहा-चार पांच सौ रंगरूट रखा है उसने.
उसने पांच सौ रखा है, तुझे क्या कमी है. हजार रखो, देखा जाएगा. अभिमान में पठान भी कम तो होते नहीं. मियां हम तो आन जानते हैं. पैसा आ गया तो अमीर हैं, चला गया तो फकीर हैं, मर गए तो पीर हैं. बहत सीधा हिसाब है, उसने पांच सौ चौकीदार लगा लिए.
दो दिन बाद फिर वही हालत, रात को मीटिंग हुई मफतलाल ने कहा-एक हजार रंगरूट रखा है उसने.
उसने एक हजार रखा है, तुझे क्या कमी है. दो हजार रखो. देखा जाएगा. मुकाबला हो तो ऐसा कि पठान का नामो निशान मिट जाए. कुदरत ने बुद्धि दी है, पैसा दिया है. अच्छा तो हजार नहीं दो हजार सैनिक रख लिया जाए. पांच हजार सैनिक लाकर के रखा, उनका खाना पीना, तनखाह. इस तरह सब कुछ गिरवी रख करके कर्जदार बन गया. एक दिन में ऐसी हालत है कि दस दिन का समय निकल गया. उसके बाद एक दिन उसने आकर पूछाः __अबे, बनिये, तू कब लड़ेगा, कब तैयार होगा? मैने पूरी तैयारी की है, पांच हजार पठान रखा है. पन्द्रह दिन हो गए पर तेरे लड़ने के दिन का पता नहीं.
मफतलाल ने बड़े ठन्डे लहजे से जवाब दिया-हजूर, मेरी क्या ताकत क्या औकात आपका मुकाबला करूं?
अरे, रात को यहां रोज बात चलती है, इतना गोरखा रखा, इतना सिक्ख रखा, इतने चौकीदार रखे. तोप गोला बारूद इकटठा किया. हम तो तेरे कहे मुताबिक डबल करते चले गये.
हजूर मेरी क्या ताकत आप से लडूं? ये तो हमारे महाजनों की बाते हैं, बाते तो हमारे यहां बड़ी लम्बी चौड़ी चलती हैं, आप जानते हैं, हम रहते संसार में है, बात मोक्ष की करते हैं. ये तो बातें हैं हजूर.
अरे, पर मेरे सामने मूछों पर ताव देता है, बंट देता है? हजूर, मेरी क्या ताकत? साढ़े सात बार मेरी मूंछ नीची. मैं मूंछ ऊंची रखता ही नहीं, आपके सामने, क्या ताकत है? मेरी साढे सात बार नीची..
अरे, पर तुम्हारा तो साढ़े सात बार नीची पर मेरा तो सब गया. मकान भी गिरबी है, तुम लेना चाहो तो ले लो.
अरे हजूर, कल लूँगा. सस्ते के अन्दर आधे दाम में मकान भी ले लिया, पठान को बाहर करा दिया वहां से. त्यागी बना कर रवाना करा दिया. यह है मफतलाल की अक्ल. एक पैसा गांठ का गया नहीं और जानता था, मेरे सामने मेरा दुश्मन रहता है. कैसे इसको
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