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गुरुवाणी
कहा
"काशी से. "
पूछा
"आप तो महा विद्वान् होंगे ?"
कहा " षट् - दर्शन का आचार्य हूँ. न्याय का आचार्य हूं. कोई ऐसा विषय नहीं जिसका मैंने अभ्यास न किया हो, जो मैने न पढ़ा हो. कोई सबजेक्ट बाकी नहीं बचा जो बेपढा रह गया हो.
पूछा
" आपके साथ जो पंडित आए हैं वे कैसे हैं?"
कहा
"बिल्कुल गधा जैसा है. अकल तो है ही नहीं. पण्डित बन गया है. है. कुछ भी नहीं आता". उसके मन में ईर्ष्या की आग थी. ऊपर से एकता की बात करने वाले और अन्दर से इस प्रकार की अनेकता और भिन्नता रखने वाले ऐसे मायावी व्यक्तियों को आप क्या कहेंगे ? वर्तमान संसार में ज्यादातर आपको ये ही नजर आएंगे बात धर्म के नाम से करते हैं जबकि उनका सारा जीवन अधर्म से ही भरा है. ऊपर से एकता की बात करते हैं पर अन्दर एकता को काटने वाली कैंची लेकर बैठे हैं. महावीर के नाम को बदनाम करने वाले, हमारे धर्म को नष्ट करने वाले, हमारी सारी पवित्रता मिटाने वाले, तथाकथित ऐसे धार्मिक नेता प्रायः आज मिलेंगे जिनका जीवन और आचरण कुछ भी शुद्ध नहीं है.
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मैं बम्बई में था. एक व्यक्ति ने आकर मुझे फोटो ग्राफ दिखलाया कहा- देखिये, हमारा अधिवेशन हुआ, बहुत बड़ा अधिवेशन था. इस अधिवेशन में राष्ट्र के कई नेता भी आए. जितनी मूर्तियॉ स्टेज पर बैठी थी, मैं सबसे परिचित था.
बम्बई में ऐसा कोई व्यक्ति नही होगा, समाज का या बाहर का जिससे प्रायः परिचय न हो. सबको जानता था. उसने बड़ी बढ़ाकर बात की एकता की चर्चा छोड़कर कहने लगा कि संवत्सरी एकता होनी चाहिए. अन्य बातों एवं विषयों में भी एकरूपता आनी चाहिए. उसकी सारी बातें मैने बड़े ध्यान से सुनी.
बोलने वाला व्यक्ति बड़ा चालाक था. वह जानना चाहता था कि महाराज मेरी बात से पूर्ण सहमत हैं या नहीं ? मुझे पूर्ण संतोष है. यों सारी बात सुनाने के बाद उसने मुझसे कहा
महाराज जी मैं चाहता हूँ कि इसमें मुझे आपका आशीर्वाद मिले. मैंने कहा- मैं साधु हॅू. लाचार हूँ. श्राप दे नही सकता. परन्तु इसमें से एक भी मूर्ति आशीर्वाद की पात्र नही है. आप जानते हैं. नहीं जानते हो तो बता दूं कि इनमें से कितने ही ऐसे मिलेंगे जिनका खाना पीना ठीक नहीं हैं. बताओ यह सच है या नहीं ?
"हां महाराज'
उससे कबूल कराया कि खाने वाले भी हैं. कितने ऐसे व्यक्ति हैं जिनका जीवन है. उससे वे व्रतधारी हैं. रात्रि भोजन त्याग है, होटल का त्याग है, दुराचार का त्याग है,
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