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-गुरुवाणी
था, मफतलाल जैसा. उसने सोचा इसकी अक्ल ठीक ठिकाने लानी चाहिए. वह किसी कारण से रोम में गया था. वहां घूमते फिरते मालूम पड़ा कि पोप अपने यहाँ वेटिकन सिटी जाने वाला है, उसे भेंट दक्षिणा में लाखों रुपये मिलेंगे, अशर्फी और सोने की मोहरें मिलेंगी.
वह पहले पोप के पास गया. पोप एक सोना-मोहर में चिट्ठी देता था. उसने सोने की दस मोहरें पोप के सामने रखी और कहा कि मुझे स्वर्ग की चिट्ठी चाहिये. आपका आशीर्वाद चाहिये. पोप ने तुरन्त साइन किये और लिखकर दे दिया कि अब दुनिया की कोई ताकत इसे स्वर्ग जाने से नहीं रोक सकती. मेरा आशीर्वाद है और यह पोप की चिट्ठी है. ___ “मैं ईश्वर का प्रतिनिधि हूं यहाँ पर, मेरी सिफारिश कोई ठुकरा नहीं सकता, निश्चिन्त हो जाओ."
अगले दिन अपना माल खजाना लेकर पोप जा रहे थे रात के समय, अपनी बग्घी में बैठकर, रास्ते में वही आदमी अपने साथियों के साथ आया बंन्दूक लेकर और आकर उनको रोक दिया.
"उसने कहा क्या है तुम्हारे पास, कौन हो तुम?"
पोप ने कहा तुम जानते नहीं? दुनिया का सबसे बड़ा धर्माचार्य हूं मैं अपना खजाना लेकर जा रहा हूं. वैटिकन पैलेस, तुम कौन हो ?"
"मैं तुम्हें लूटने के लिए आया हूं. बेवकूफ बना करके जगत को तुमने लूटा है. क्या है तुम्हारे पास ? जो है वह मुझे दे दो. नहीं तो इसका खतरनाक परिणाम भोगना पड़ेगा."
पोप ने पहले तो कहा – “धमकी क्यों दे रहे हो ? याद रखो मेरे साथ इस गलत व्यवहार के परिणाम स्वरूप मरकर नरक में जाओगे. यू विल गो टू हैल."
उसने कहा – “इसीलिए तो एडवांस बुकिंग करवाया है. दस डालर देकर चिट्ठी ली हैं. कह दो तुम्हारी चिट्ठी गलत है. इस साइन का कोई वैल्यू नहीं." पोप क्या बोलते. सारा माल खजाना लेकर वह चला गया. कहा-इसीलिए पहले एक नहीं दस मोहर दिये, चिट्ठी पहले से ही लिखवा ली ताकि मेरे स्वर्ग में जाने में कोई गडबड़ी न रहे. तुम बोल दो मेरी चिट्ठी झूठ है. क्या बोले? स्वयं का साइन किया हुआ, सारा माल ले गया.
यहाँ भी बहुत कुछ चला है. यहाँ के धर्माचार्यों ने भी कुछ कम नहीं किया. जहाँ साधु को मर्यादा का पालन करना था, तप और त्याग से जहाँ परिपूर्ण जीवन होना चाहिये था, वहाँ हमारे जीवन की कैसी दुर्दशा हुई, उसकी साक्षी इतिहास की अनेक घटनाएँ आपकों मिलेगी. वर्तमान में भी हम देख रहे हैं. कहलाने को पूरा साधु कहलाये पर दुनिया भर के ऐशो आराम पाते हैं, मौज करते हैं. दुनिया भरके भौतिक साधन जब पास में हैं तो त्याग कहाँ रहा ?
मफतलाल के खेत के बाहर बाबा जी खड़े थे. तभी उन्होंने चार पांच चेलों को भेज दिया था, गन्ने तोड़ने के लिए. बेचारे चेले अन्दर गये और गन्नों को तोड़ने में लग गये.
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