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-गुरुवाणी
___ यदि घर में पुत्र का आदेश हो, श्राविका का आदेश मिल जाए कि यह कार्य करना है, जरा भी उपेक्षा नही. कोई मंगल कार्य आ जाए, धर्म कार्य आ जाए, किसी परोपकार में दो पैसा अगर देने का प्रश्न आ जाए, महाराज. जरा विचारेंगे. मैं भी कहता हूं. ऐसे दरिद्रों से क्या लेना, जो पुण्य कार्य को उधार में रखते हों, कल करेंगे. ये मन की मानसिक दरिद्रता के लक्षण हैं. हमारे ऐसे भी पूर्वज थे. जिन्होंने ऐसे महान कार्य किये.
कलिकाल सर्वज्ञ हेमचन्द्र सूरि जो इस जगत के अन्दर ज्ञान के सूर्य समान थे, ऐसा साहित्य का समुद्र देने वाला एक भी महापुरुष आज तक पैदा नही हआ 2500 वर्षों में. वे सरस्वती के वरद-पुत्र थे, उनकी प्रतिभा अलौकिक थी, और शेर की सन्तान भी शेर जैसी थी. उनके शिष्य रामचन्द्र सूरि विद्वान, महान कवि और इसी सम्राट् अजयपाल ने जिन को लेकर हमारे आहड़ मन्त्री ने तिलक के लिए प्राण अर्पण कर दिया, हमारे रामचन्द्र सूरि महाराज को भी बुलाकर उसने आदेश दिया. जिसको आज्ञा से बाहर निकाला था, जो अनुशासन भंग करने वाला, प्रभु आज्ञा के प्रति द्रोही था बालचन्द्र, हेम चन्द्र सूरि का शिष्य था, परन्तु आचार्य भगवन्त की आज्ञा से बहिष्कृत कर दिया, कि यह अयोग्य और
कुपात्र है.
उनके साथ राजा का ऐसा सुन्दर संबंध था, संबंध को लेकर कुछ प्रलोभन में आकर राजा ने रामचन्द्र सूरि को बुलाया, महान गीतार्थ पुरुष थे, परम पवित्र आचरण था, गुरु आज्ञा को समर्पित थे, बुलाकर के कहा – “बालचन्द्र को आचार्य पद दिया जाए."
रामचन्द्र सूरि ने कहा – “राजन्-मैं स्वीकार नहीं कर सकता. मेरे गुरु का आदेश सर्वोपरि है. मुझ से भले ही ये दीक्षा में बड़े है. विद्वान है, सब कुछ है, पर गुरु आज्ञा का द्रोह तो मैं नहीं कर सकता."
"तुम जानते हो इसका क्या परिणाम होगा?"
“परिणाम क्या? जब दीक्षा ली, संन्यास लिया, सर से कफन साथ में लेकर आया हूं, मौत से साधु डरते नहीं.” गर्जना दी गुरु आज्ञा के प्रति वफादारी थी, जानते थे. इसका परिणाम क्या हो सकता है. आदेश दिया सम्राट अजयपाल ने. यह घटना भी 1230 की है.
उन्होंने कहा - "अगर ये आचार्य पद देने को तैयार नहीं, मेरे आदेश का अगर उल्लंघन करते हैं. इन्हें मौत की सजा दी जाए. किस प्रकार मौत दी जाए वह भी बतला दिया. गर्म-लोहे का तवा, बड़े-बड़े उसमें कील लगे हुए, आग में तपाकर लाल सुर्ख बना दिया. कोई भी चीज उसमें डाल दी जाए तो मोम की तरह पिघल जाए, इतना लाल-सुर्ख किया गया. रामचन्द्र सूरि को वहां लेकर गए.
राजा ने कहा - "आप मेरी आज्ञा मान लें, मैनें जो आदेश दिया है, उसके अनादर का परिणाम सामने देख लें, अगर मान लेते हैं, राज्य गुरु का पद आपको दिया जाएगा. बहुत बड़ा सम्मान मैं आपका करूंगा, मेरे आग्रह से आप इन्हें आचार्य पद दे दें."
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